किसी भी योजना की सार्थकता इसमें है कि कितने पात्र लोगों को उससे लाभ मिल पा रहा है। अगर पात्र व्यक्ति योजना से लाभान्वित नहीं हो पाते तो व्यवस्था की खामियां उजागर होती हैं। सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी के मामले बताते हैं कि व्यवस्था में कई छेद हैं, जिन्हें भरे बिना समाज का भला नहीं हो सकता। ऐसे मामले लगातार सामने आ रहे हैं, जहां लक्षित वर्ग को योजना के दायरे में ही नहीं रखा जाता जबकि अपात्र लोग योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। प्रदेश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के लिए सस्ते राशन के साथ कई सुविधाओं का प्रावधान किया गया है। लेकिन अकसर सूची में शामिल परिवारों पर विवाद गरमाता रहता है। सरकारी अधिकारियों की सुस्ती और पंचायत प्रतिनिधियों की अपनों को फायदा पहुंचाने की नीति से अपात्र लोग योजना का लाभ उठा रहे हैं। कई स्थानों पर तो पात्र परिवारों को सूची में शामिल ही नहीं किया गया है।

पंचायतों में बीपीएल चयन के लिए होने वाली ग्रामसभा की बैठकों में हंगामा होना इसमें धांधली का संकेत देता है। पिछले साल भी प्रदेश सरकार ने गरीबों के घरों पर सूचना अंकित करने का अभियान चलाया था, जिसमें ऐसे कई परिवारों का खुलासा हुआ है, जिनके घरों में तमाम सुख-सुविधाएं हैं, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में गरीब ही रहे। इस साल बीपीएल परिवारों के चयन में कई पंचायतों ने सराहनीय कदम उठाए हुए खुद को बीपीएल मुक्त घोषित किया। इन पंचायतों ने योजना का मर्म समझा और मानकों का सम्मान किया। लेकिन कई पंचायतों में हंगामा भी हुआ और अपात्रों के चयन पर हंगामा भी। यह साबित करता है कि सरकारी कार्यप्रणाली में सुस्ती दूर नहीं हो पाई है। जिन्हें लाभान्वित होना है, वे बेखबर हैं और लाभ अपात्र उठा रहे हैं। लोगों का दायित्व है कि जनहित के मामलों में चुप्पी तोड़ें व गलत को गलत कहना सीखें। अगर ग्रामसभा की बैठक में ही साधन संपन्न परिवारों के चयन पर आपत्ति उठे तो संभव नहीं था कि गरीबों का अधिकार कोई छीन पाता। पंचायत प्रतिनिधियों को ईमानदार होना चाहिए, ताकि योजनाओं का उन्हीं को लाभ मिले, जिन्हें जरूरत है। सरकारी अधिकारियों का दायित्व है कि व्यवस्था में जो छेद हैं, उन्हें भरे ताकि जरूरतमंद लोगों को ही योजना का लाभ मिल सके।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]