दो दिन में करीब तीस बच्चों की मौत को लेकर चर्चा में आए गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के हालात का जायजा लेने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पहुंचे और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा भी। मेडिकल कॉलेज का दौरा करने के बाद योगी आदित्यनाथ ने यह जो कहा कि दोषी लोगों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की जाएगी वह अपेक्षा के अनुरूप ही है, लेकिन आवश्यकता इसकी भी है कि उन कारणों का निवारण किया जाए जिसके चलते गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में ऐसी घटना घटी। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि मुश्किल से चार दिन पहले ही मुख्यमंत्री मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण करने गए थे। स्पष्ट है कि वह उस अव्यवस्था से अवगत नहीं हो सके जो वहां व्याप्त थी। दरअसल ऐसे निरीक्षण एक सीमित ही महत्व रखते हैं और इसीलिए जरूरत औचक अथवा औपचारिक निरीक्षण की नहीं, बल्कि व्यवस्था में मूलभूत सुधार की है। स्वास्थ्य तंत्र में सुधार के बारे में केंद्र सरकार को भी नए सिरे से सोचने की जरूरत है, क्योंकि एक ओर तो अपने देश में सरकारी स्वास्थ्य ढांचे की दशा बहुत दयनीय है और दूसरी ओर पिछले तीन वर्षों में इस ढांचे को दुरुस्त करने की दिशा में केंद्र सरकार कोई बड़ी कामयाबी हासिल करती हुई नहीं दिखी है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि कई नए एम्स बन रहे हैं, क्योंकि हर कोई इससे परिचित है कि मौजूदा एम्स वह चाहे दिल्ली का हो अथवा अन्य शहरों का, तमाम समस्याओं से घिरा हुआ है। स्थिति यह है कि दिल्ली स्थित एम्स में गंभीर बीमारी से ग्रस्त तमाम मरीजों को ऑपरेशन के लिए दो-दो साल बाद की तिथि देनी पड़ रही है।
जब देश के सबसे बड़े माने जाने वाले अस्पताल में यह स्थिति हो तब फिर इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि अन्य सरकारी अस्पताल अथवा मेडिकल कॉलेज किस स्थिति से दो-चार हो रहे होंगे। सरकारी अस्पताल आम तौर पर अव्यवस्था के पर्याय बनते जा रहे हैं। कदम-कदम पर मरीजों की उपेक्षा-अनदेखी आम बात है। कई बार तो ऐसा लगता है कि हमारा सरकारी स्वास्थ्य तंत्र सेवा भाव से ही विलग हो गया है। यह पहली बार नहीं है जब किसी सरकारी अस्पताल अथवा मेडिकल कॉलेज में अव्यवस्था-अनदेखी से मरीजों की अस्वाभाविक मौत हुई हो, लेकिन चाहे केंद्र सरकार हो अथवा राज्य सरकारें, वे स्वास्थ्य तंत्र में सुधार का कोई ऐसा उदाहरण पेश नहीं कर पा रही हैं जो सरकारी स्वास्थ्य ढांचे के लिए अनुकरणीय साबित हो सके। जिस तरह गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों ने आंकड़ों के जरिये यह बताने की कोशिश की कि इस तरह मौतें होते रहना सामान्य बात है उसे बहाना ही कहा जाना चाहिए। विडंबना यह है कि अब ऐसे बहाने रोज ही देखने को मिलते हैं। यह ठीक है कि किसी भी अस्पताल में गंभीर बीमारी से ग्रस्त मरीजों की मौतें होना स्वाभाविक है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मौतों के हर आंकड़े को स्वाभाविक मान लिया जाए। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज की घटना उत्तर प्रदेश सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। सरकारी स्वास्थ्य ढांचे में सुधार लाने की यह वह चुनौती है जिसका सामना दोनों सरकारों को करना ही होगा और इसके लिए मौजूदा तौर-तरीकों का परित्याग आवश्यक है।

[ मुख्य संपादकीय ]