जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार हो रहे लोकसभा चुनावों को लेकर यह जिज्ञासा देश में ही नहीं, दुनिया के भी कुछ हिस्सों में थी कि इस केंद्र शासित प्रदेश में चुनावों के प्रति लोगों का कैसा रुझान रहेगा? यह जिज्ञासा कश्मीर घाटी के निर्वाचन क्षेत्रों को लेकर अधिक थी, क्योंकि इसके पहले एक तो सघन सुरक्षा के साए में चुनाव कराने पड़ते थे और दूसरे, तमाम तैयारियों के बावजूद मतदान प्रतिशत अपेक्षा से कहीं कम रहता था। यह उत्साहजनक है कि इस बार तस्वीर बदली हुई नजर आई।

घाटी की तीनों लोकसभा सीटों श्रीनगर, बारामुला के बाद अनंतनाग-राजौरी में भी अच्छा-खासा मतदान हुआ। इन तीनों सीटों पर बढ़े हुए मतदान प्रतिशत ने चुनावों में लोगों की कम भागीदारी की आशंका को तो दूर किया ही, इस पर भी मुहर लगाई कि यहां के लोगों का चुनाव प्रक्रिया पर पूरा भरोसा है। यह भरोसा कश्मीर में लोकतंत्र की जड़ों को और अधिक मजबूत करने का काम करेगा। कश्मीर में लोकतंत्र को मजबूती मिलने का मतलब है यहां के लोगों की राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल होने के प्रति ललक बढ़ना। यह उल्लेखनीय है कि श्रीनगर, बारामुला और अनंतनाग-राजौरी में लोगों ने बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा लिया। कुछ जगह तो राष्ट्रीय औसत के बराबर मतदान देखने को मिला। इस बार चुनाव प्रचार के दौरान भी घाटी में अतिरिक्त उत्साह नजर आया।

इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि कश्मीर में अलगाववादी संगठनों से जुड़े नेताओं और उनके प्रभाव में रहने वाले लोगों ने भी मतदान में हिस्सा लिया। इसका सीधा अर्थ है कि कश्मीर के लोगों में यह संदेश पहुंच चुका है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सेदारी ही उनकी अपेक्षाओं और आशाओं को पूरा करने में सहायक सिद्ध होगी। यह एक शुभ संदेश है और इसे देखते हुए जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए जाने चाहिए। यह अच्छा हुआ कि गत दिवस मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह कहा कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया शीघ्र ही शुरू होगी। ऐसा किया जाना समय की मांग भी है।

निःसंदेह केवल इसलिए नहीं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि इस वर्ष सितंबर के पहले इस राज्य में विधानसभा चुनाव करा लिए जाने चाहिए। विधानसभा चुनाव जितनी जल्दी संभव हो, इसलिए भी कराए जाने चाहिए, ताकि लोकतांत्रिक तौर-तरीकों के प्रति लोगों का भरोसा और अधिक बढ़े और उन्हें चुनी हुई सरकार भी हासिल हो सके। निश्चित रूप से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर और विशेष रूप से अलगाववाद एवं आतंकवाद से पीड़ित रही कश्मीर घाटी का माहौल बदला है, लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि यहां की स्थितियां पूरी तरह सुधर गई हैं। घाटी में अभी काफी कुछ बदलाव शेष है। यह शेष बदलाव तब अच्छे से पूरा होता हुआ दिखेगा, जब कश्मीरी हिंदू अपने घरों को लौट सकेंगे।