कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने एक बार फिर वह काम किया जिसके लिए वह खासे कुख्यात हो चुके हैैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति जैसी अभद्र और निम्न कोटि की भाषा का इस्तेमाल किया उससे यही स्पष्ट हुआ कि या तो उनके मन में प्रधानमंत्री के प्रति नफरत का भाव का कुछ ज्यादा ही गहरा गया है या फिर वह श्रेष्ठता बोध के अहंकार में इस कदर डूब गए हैैं कि अपने आगे किसी को कुछ समझते ही नहीं। अगर ऐसा कुछ नहीं है तो फिर वह यह कैसे भूल सकते हैैं कि नरेंद्र मोदी को कांग्रेस के दफ्तर में चाय की दुकान लगाने के लिए निमंत्रित करने वाले उनके बयान ने कांग्रेस की कैसी छीछालेदर की थी? मणिशंकर विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी रह चुके हैैं और उनकी पहचान पूर्व केंद्रीय मंत्री के साथ-साथ एक लेखक की भी है। आखिर उनके जैसे पढ़े-लिखे लोग इस तरह मर्यादा लांघकर समाज को क्या संदेश दे रहे हैैं? क्या यही कि भारतीय राजनीति में अभी भी सामंती मानसिकता का बोलबाला है और भाषा की गरिमा के लिए कहीं कोई स्थान नहीं बचा है? यह सही है कि राजनीति में सक्रिय लोग एक-दूसरे के प्रति आरोप-प्रत्यारोप लगाते ही रहते हैैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे गाली-गलौज तक पहुंच जाएं। दुर्भाग्य से आज ऐसा ही हो रहा है। चूंकि बड़े नेता भी अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति अभद्र भाषा का इस्तेमाल करके अपनी खीझ निकालने में संकोच नहीं करते इसलिए उनका अनुसरण करने वालों का संख्या बढ़ती चली जा रही है। नतीजा यह है कि राजनीतिक विमर्श की भाषा दिन-प्रतिदिन स्तरहीन होती जा रही है।
आज स्थिति यह है कि चुनाव का माहौल हो या न हो, नेताओं के अभद्र-अमर्यादित बयानों का सिलसिला कायम ही रहता है। जो सार्वजनिक रूप से नहीं बहकते वे सोशल मीडिया में भाषा का संयम खोते दिखते हैैं। यदि राजनीतिक विमर्श की भाषा का स्तर इसी तरह गिरता रहा तो राजनीति गरिमा से और अधिक हीन ही होगी। आखिर गरिमा से हीन राजनीति समाज और देश को कोई सही दिशा कैसे दे सकती है? ऐसी राजनीति तो समाज में कटुता और कलह ही पैदा करेगी। यह लगभग तय है कि यदि गुजरात में चुनाव न हो रहे होते और कांग्रेस को नुकसान की चिंता नहीं सताती तो वह मणिशंकर अय्यर के खिलाफ कोई कार्रवाई करने वाली नहीं थी। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि मणिशंकर अय्यर के अशिष्ट बयान पर राहुल गांधी ने हस्तक्षेप करते हुए उनसे माफी मांगने की अपेक्षा व्यक्त करने के साथ ही यह शिकवा भी किया था कि भाजपा भी कांग्रेस के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करती रहती है। शायद यही कारण रहा कि मणिशंकर अय्यर गोलमोल शब्दों में खेद जताकर और माइक झटक कर चलते बने थे। चुनावी कारणों से ही सही, कांग्रेस ने मणिशंकर अय्यर के खिलाफ कार्रवाई करके एक सही संदेश देने की कोशिश की है। बेहतर हो कि सभी राजनीतिक दल यह समझें कि उनमें अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति सम्मान न केवल होना चाहिए, बल्कि वह दिखना भी चाहिए। फूहड़ भाषा का इस्तेमाल करने वालों के साथ वैसा ही होना चाहिए जैसा मणिशंकर अय्यर के साथ हुआ।

[ मुख्य संपादकीय ]