आइआइटी और मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली परीक्षाओं-जेईई और नीट को लेकर जैसी संकीर्ण राजनीति का परिचय दिया जा रहा है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस मसले पर छात्रों, अभिभावकों और शिक्षाविदों की राय को महत्व दिया जाना चाहिए उस पर कुछ नेता सक्रिय होकर अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुए हैं। इन परीक्षाओं को लेकर किस तरह क्षुद्र राजनीति हो रही है, इसका पता उस विरोध प्रदर्शन से चलता है जिसका आयोजन युवा कांग्रेस ने दिल्ली में किया। क्या यह हास्यास्पद नहीं कि कांग्रेस के युवा तो विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर जमा हो सकते हैं, लेकिन इंजीनियरिंग और मेडिकल परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्र जरूरी सावधानी बरतते हुए परीक्षा नहीं दे सकते?

नि:संदेह कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा अभी टला नहीं है, लेकिन यदि सतर्कता बरतते हुए हवाई एवं रेल यात्रा संभव है और विधानसभाओं के सत्र आयोजित हो सकते हैं तो फिर परीक्षाएं क्यों नहीं हो सकतीं? कुछ राजनीतिक दलों की ओर से यह जो माहौल बनाया जा रहा है कि सरकार कोरोना संक्रमण के इस दौर में छात्रों की सेहत की चिंता करने को तैयार नहीं, वह एक किस्म की राजनीतिक शरारत ही है। आखिर कोई भी सरकार बेवजह छात्रों को परेशानी में डालने का काम क्यों करेगी? इससे उसे क्या हासिल होगा?

जब शिक्षाविद् यह कह रहे हैं कि परीक्षाओं को और टालने से छात्रों का पूरा एक वर्ष बर्बाद हो सकता है तो उस पर गौर किया जाना चाहिए। इसी तरह इस पर भी ध्यान दिया जाए कि सुप्रीम कोर्ट उन याचिकाओं को खारिज कर चुका है जिनमें जेईई और नीट को स्थगित करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट इसी नतीजे पर पहुंचा था कि ये परीक्षाएं फिर से स्थगित करने से लाखों छात्रों को अपने करियर का एक साल गंवाना पड़ सकता है। ध्यान रहे कि ये दोनों परीक्षाएं दो बार स्थगित हो चुकी हैं। सितंबर में उनका आयोजन करने की तैयारी इसीलिए हो रही है, क्योंकि उन्हेंं और टालने की गुंजाइश नहीं रह गई है।

यह ठीक नहीं कि वस्तुस्थिति को समझने के बजाय कुछ लोग यह साबित करने के लिए अतिरिक्त मेहनत कर रहे हैं कि मौजूदा माहौल में परीक्षाओं का आयोजन करना छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ है। वस्तुत: खिलवाड़ तो छात्रों की आड़ में की जाने वाली सस्ती राजनीति है। इससे इन्कार नहीं कि ग्रामीण इलाकों के छात्रों को परीक्षा केंद्र तक पहुंचने में कुछ समस्या आ सकती है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि परीक्षाओं का विरोध किया जाए। कायदे से जोर इस पर दिया जाना चाहिए कि इस समस्या को दूर करने के कदम उठाए जाएं।