मतदान के आंकड़ों को लेकर उठ रहे सवालों के बीच चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट कर दिया कि मतदान के दिन जारी होने वाले आंकड़ों और अपडेट आंकड़ों में एक-दो प्रतिशत का अंतर होना कोई असामान्य बात नहीं और पहले भी ऐसा होता रहा है। राजनीतिक दल इस तथ्य से अपरिचित नहीं, लेकिन वे बेवजह सवाल उठाने में लगे हुए हैं। चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि किन कारणों से मतदान के अपडेट आंकड़े जारी करने में विलंब होता है। उसने पिछले चुनावों के आंकड़े जारी कर यह भी रेखांकित किया कि पहले भी पांच-सात दिन बाद अपडेट आंकड़े सार्वजनिक किए जाते रहे हैं।

इस स्पष्टीकरण के बावजूद इसके आसार कम ही हैं कि विपक्षी राजनीतिक दल चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा करना बंद करेंगे। इस पर आश्चर्य नहीं कि कुछ लोग इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गए हैं। इसके अतिरिक्त कांग्रेस को यह लगने लगा है कि मतदान के दिन जारी होने वाले अंतरिम आंकड़ों और अंतिम आंकड़ों में अंतर के पीछे कहीं किसी तरह की धांधली तो नहीं है?

इस आशंका का कोई मतलब नहीं, क्योंकि मतदान की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद सभी दलों के पोलिंग एजेंट को इसका विवरण दिया जाता है कि कहां कितने प्रतिशत मतदान हुआ। इसके अतिरिक्त ईवीएम को सघन सुरक्षा में रखा जाता है। इस सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता भी करते हैं। साफ है कि मतदान प्रतिशत के जो आंकड़े चुनाव आयोग की ओर से बताए जा रहे हैं, उनमें फेरबदल किया जाना संभव नहीं, क्योंकि उनकी पुष्टि ईवीएम से होती है।

चुनाव आयोग की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार पहले चार चरणों में मतदान के दिन जारी अंतरिम आंकड़ों और अंतिम आंकड़ों में अंतर करीब एक करोड़ मतों का है। इसे भारी अंतर वही करार दे सकता है, जिसे इसका ज्ञान न हो कि देश में मतदाताओं की कितनी अधिक संख्या है। पहले चार चरणों में 45.10 करोड़ लोगों ने मतदान किया है। ऐसे में एक करोड़ का अंतर कोई खास बात नहीं।

इसके अतिरिक्त जब सबको पता है कि ईवीएम के जरिये मतदान के आंकड़ों की पुष्टि हो जानी है, तब फिर चुनाव आयोग पर संदेह जताने का क्या मतलब? ऐसा लगता है कि उस पर संदेह जताने का काम इसलिए किया जा रहा है ताकि यदि चुनाव परिणाम प्रतिकूल आएं तो उस पर ठीकरा फोड़ा जा सके। ध्यान रहे कि यह काम पहले भी होता रहा है और इसके लिए निशाना बनाया जाता रहा है ईवीएम को। इस बार भी चुनाव शुरू होने के पहले यह कोशिश की गई कि मतदान ईवीएम के बजाय मतपत्रों से हों। इसके लिए यह मांग की गई कि सभी वीवीपैट का मिलान किया जाए। यह एक तरह से पिछले दरवाजे से मतपत्रों के युग में लौटने की मांग थी।