प्रधानमंत्री के आवास पर आयोजित जम्मू-कश्मीर के नेताओं की सर्वदलीय बैठक जिस तरह लंबी खिंची, उससे यह स्पष्ट है कि सभी मसलों पर व्यापक बातचीत हुई और अच्छे माहौल में हुई। यह माहौल कायम रहना चाहिए, क्योंकि उससे उम्मीदों को बल मिलता है। सर्वदलीय बैठक में हुई बातचीत से यह भी संकेत मिला कि उसमें अनुच्छेद 370 और ऐसे ही मसले उठे अवश्य, लेकिन उन पर अधिक ध्यान केंद्रित नहीं किया गया। इसका कारण भी स्पष्ट है।

अनुच्छेद 370 का मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है और उसका फैसला आने के पहले उस पर चर्चा का कोई लाभ नहीं। इस पर चर्चा का लाभ इसलिए भी नहीं, क्योंकि किसी को इसकी उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि इस अनुच्छेद की वापसी हो सकती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह एक अस्थायी अनुच्छेद था और पिछले कई दशकों में उसके कई प्रविधान खत्म या निष्प्रभावी हो गए थे। इस अनुच्छेद के अस्थायी स्वरूप को देखकर ही यह कहा जाता था कि वह घिसते-घिसते घिस जाएगा। यह ठीक है कि उसे एक झटके में समाप्त कर दिया गया, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कोई उसकी वापसी की उम्मीद करे। यह अब एक बीती बात हो गई और उसे बिसार देना ही उचित है।

सर्वदलीय बैठक में जम्मू-कश्मीर के विकास पर और अधिक ध्यान देने तथा उसकी समस्याओं का तेजी से समाधान करने के साथ उसके पूर्ण राज्य के दर्जे को बहाल करने एवं चुनाव कराने की मांग उठनी स्वाभाविक ही थी। इस पर हैरत नहीं कि इस मांग पर केंद्र सरकार ने सकारात्मक रुख दिखाया, क्योंकि उसने अनुच्छेद 370 खत्म करते समय ही कहा था कि जैसे ही अनुकूल हालात होंगे, राज्य के दर्जे को बहाल कर दिया जाएगा। बेहतर हो कि गुपकार गठबंधन जैसे कश्मीर घाटी के राजनीतिक समूह माहौल अनुकूल बनाने में मददगार बनें। इसका एक लाभ यह भी होगा कि राज्य में विधानसभा चुनाव कराना आसान होगा।

यदि जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल जल्द विधानसभा चुनाव चाहते हैं तो उन्हें राज्य के परिसीमन की प्रक्रिया को गति देने में सहायक बनना चाहिए। नि:संदेह परिसीमन आयोग के लिए भी यह आवश्यक है कि वह अपना काम जल्द खत्म करे, ताकि जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने का रास्ता साफ हो सके। फिलहाल यह कहना कठिन है कि परिसीमन की प्रक्रिया कब तक पूरी होगी, लेकिन उचित यह होगा कि यह काम इस तरह हो कि जम्मू और कश्मीर में जो राजनीतिक असंतुलन है और जिसके चलते उनके बीच तनातनी कायम हो जाती है, वह हमेशा के लिए दूर हो सके। इसका कोई औचित्य नहीं कि अधिक क्षेत्रफल और आबादी के बाद भी जम्मू क्षेत्र की विधानसभा सीटें कम हों।