अंतत: बिहार (Bihar Politics) में वही हुआ, जिसका अनुमान लगाया जा रहा था। नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एक बार फिर भाजपा से नाता तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल के साथ हो लिए। वैसे तो वह पहले भी कई बार पाला बदल चुके हैं, लेकिन इस बार उनके लिए अपने निर्णय के औचित्य को सही सिद्ध करना इसलिए कठिन होगा, क्योंकि इस आरोप में दम नहीं कि आरसीपी सिंह के जरिये जदयू को कमजोर करने की कोशिश की जा रही थी।

वास्तव में इससे हास्यास्पद और कुछ नहीं हो सकता कि आरसीपी सिंह (RCP Singh) नीतीश कुमार की इच्छा के बगैर केंद्र में मंत्री बन गए थे। जदयू नेता राजग गठबंधन से बाहर आने के कारणों में चिराग पासवान माडल की भी चर्चा कर रहे हैं। इसमें संदेह नहीं कि पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने जदयू के खिलाफ प्रत्याशी उतार कर नीतीश कुमार को झटका दिया था, लेकिन क्या उन्हें इतने दिन बाद यह समझ आया कि चिराग ने भाजपा के इशारे पर ऐसा किया?

एक सवाल यह भी है कि यदि नीतीश कुमार 77 सदस्यों वाली भाजपा के दबाव का सामना नहीं कर पा रहे थे, तो फिर 79 सदस्यों वाली राजद (RJD) के दबाव से कैसे निपट पाएंगे? अब तो उन्हें राजद (RJD) के साथ महागठबंधन (Mahagathbandhan MGB) के अन्य दलों को भी संतुष्ट करना होगा। यह आसान नहीं होगा, क्योंकि इस बार संख्या बल के मामले में जदयू कहीं कमजोर है।

बिहार में सत्ता की चाभी भले ही जदयू के पास हो, लेकिन अब वह तीसरे नंबर की पार्टी रह गई है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन को छोड़ा था तो इससे आजिज आकर कि राजद नेता शासन संचालन में अनावश्यक हस्तक्षेप कर रहे थे और वह उसे रोक नहीं पा रहे थे। क्या इस बार वह ऐसा करने में सक्षम होंगे और वह भी ऐसे समय, जब सुशासन बाबू की उनकी छवि पर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं और बिहार विकास के पैमाने पर पिछड़ा है। अब तो उसके और पिछड़ने का अंदेशा है। नीतीश कुमार को उन सवालों के भी जवाब देने होंगे, जिनके तहत वह राजद नेताओं के भ्रष्टाचार को रेखांकित किया करते थे।

नि:संदेह न तो गठबंधन राजनीति में टूट-फूट नई बात है और न ही जनादेश की अनदेखी किया जाना, लेकिन यह एक तथ्य है कि बार-बार पाला बदलने वाले दल अपनी साख गंवाते हैं। यह सही है कि नीतीश कुमार के पास अब पहले से अधिक विधायकों का समर्थन होगा, लेकिन इसमें संदेह है कि वह अब अपने हिसाब से शासन का संचालन करने में ज्यादा सक्षम होंगे। जहां तक भाजपा की बात है, उसके सामने बिहार में अपने बलबूते अपनी जड़ें जमाने की चुनौती आ खड़ी हुई है। उसके पास इस चुनौती का सामना करने के अलावा और कोई उपाय भी नहीं।