इस बार मकर संक्रांति पर सूबे का सियासी माहौल बदला-बदला था। जहां तिलकुट और दही-चूड़ा के बहाने हजारों लोगों की भीड़ लगती थी, वहां कोई चहल-पहल नहीं थी। दूसरी ओर चार साल के बाद गठबंधन सरकार के दो दलों के लोग फिर एक बार साथ-साथ संक्रांति के भोज का आनंद उठा रहे थे। इसी बीच कुछ नेताओं के दूसरे दल के भोज में शामिल होने पर सियासी खिचड़ी भी खूब पकी। कहा तो यह भी गया कि खरमास खत्म हुआ, अब कुछ राजनीतिक बदलाव भी देखने को मिल सकते हैं। दरअसल यह सियासी मकर संक्रांति कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री अशोक चौधरी को लेकर ज्यादा चर्चा में आ गई। जदयू प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह द्वारा दिए गए भोज में अशोक चौधरी एक विधान पार्षद और एक विधायक के साथ शामिल हुए। इस भोज में राजद और कांग्रेस के किसी भी नेता को न्योता नहीं दिया गया था।

हालांकि अशोक चौधरी को अलग से आमंत्रित किया गया था। अपनी पार्टी से नाराज चल रहे अशोक चौधरी को देखकर सवाल जायज था कि वे जदयू के भोज में कैसे। इस सवाल पर किसी ने स्पष्ट जवाब तो नहीं दिया, लेकिन संभावनाओं की बात कहकर सियासत को हवा दे दी। जदयू प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि हमारी नीतियों में आस्था और विश्वास रखने वाले कई लोग जदयू में शामिल होंगे। हाल ही में सदानंद सिंह के आवास पर आयोजित पार्टी की बैठक में वे शामिल नहीं हुए थे। यह बैठक भी विधायकों की कम उपस्थिति को लेकर चर्चा में रही थी। नीतीश मंत्रिमंडल में अशोक चौधरी ने खुद को साबित करने की भरपूर कोशिश की थी। इसका उन्हें फायदा मिल सकता है। एक तरफ राजद विपक्षी दलों को एकजुट कर राजग सरकार के खिलाफ लड़ने की कवायद में है तो दूसरी ओर कांग्रेस की खींचतान इस ओर इशारा कर रही है कि लोकसभा चुनाव आते-आते विपक्ष का चेहरा भी बदल सकता है। जाहिर है, विपक्ष को कमजोर और मजबूत करने की सियासी लड़ाई फिर चरम पर होगी।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]