दुष्कर्म की घटनाओं में भयावह वृद्धि के साथ जिस तरह बच्चियों को भी बड़े पैमाने पर दुष्कर्म का शिकार बनाया जा रहा है उसे देखते हुए अब यह अनिवार्य हो गया है कि ऐसे वीभत्स अपराध के दोषियों को कठोरतम सजा देने के कुछ उपाय किए जाएं। इस मामले में और देर इसलिए नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि निर्भया कांड के बाद दुष्कर्म रोधी कानून को कठोर करने के जो उपाय किए गए थे वे पर्याप्त नहीं सिद्ध हुए। न तो दुष्कर्म के मामलों में कोई उल्लेखनीय कमी देखने को मिली और न ही बच्चियों के साथ होने वाली दुष्कर्म की घटनाओं में। उलटे इस तरह की घटनाएं बढ़ती ही दिख रही हैं। ऐसे में दुष्कर्म के अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए जो कुछ भी संभव हो, उसे प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए। दुष्कर्म और खासकर बच्चियों से दुष्कर्म के मामले समाज को शर्मिंदा करने के साथ ही देश की छवि को भी खराब करते हैं।

ऐसी घिनौनी घटनाएं सभ्य समाज के चेहरे पर एक दाग की तरह तो चस्पा होती ही हैं, आम लोगों में सिहरन पैदा करने का भी काम करती हैं। कठुआ में एक बच्ची से दुष्कर्म की जघन्य घटना ने ठीक ऐसा ही किया है। यह स्वाभाविक ही है कि कठुआ की घटना को लेकर देश में कुछ वैसा ही रोष-आक्रोश देखने को मिल रहा है जैसा निर्भया कांड के समय देखने को मिला था। यदि केंद्रीय महिला एवमं बाल विकास मंत्रालय बच्चों को यौन अपराधों से बचाने वाले पोक्सो कानून की धाराओं में बदलाव लाकर 12 साल से कम उम्र की लड़कियों से दुष्कर्म के अपराधियों के लिए मौैत की सजा के प्रावधान पर विचार कर रहा है तो यह वक्त की मांग भी है और जरूरत भी। बच्चियों से दुष्कर्म के अपराधियों को मौत की सजा संबंधी कानून हरियाणा, मध्यप्रदेश और राजस्थान में बनाए जा चुके हैं। इन राज्यों ने ऐसे कानून इसलिए बनाए, क्योंकि बच्चियों से दुष्कर्म थमने का नाम नहीं ले रहे थे।

चूंकि इन राज्यों जैसी स्थिति सारे देश में दिख रही है इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि महिला एवमं बाल विकास मंत्रालय अपने विचार को अमल में लाने के मामले में तेजी दिखाए। बच्चियों से हैवानियत के सिलसिले को जारी रहते हुए नहीं देखा जा सकता। इसमें दो राय नहीं कि दुष्कर्मी तत्वों के मन में खौफ पैदा करने और उन्हें ऐसी सजा देने की जरूरत है जो सबक सिखाने वाली हो, लेकिन यह ध्यान रहे कि केवल कठोर कानून बनाने से उद्देश्य की पूर्ति होने वाली नहीं है। कठोर कानून बनाने के साथ ही पुलिस जांच और न्याय प्रकिया को दुरुस्त करने की भी जरूरत है। दुर्भाग्य स यह कार्य हमारे नीति-नियंताओं के एजेंडे में नहीं नजर आता और इसका उदाहरण है उन्नाव का मामला। ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं जिनसे यह पता चलता है कि दुष्कर्म के मामलों की जांच में न्यूनतम संवेदनशीलता का भी परिचय नहीं दिया जाता। नि:संदेह कठोर कानून तभी प्रभावी सिद्ध होते हैं जब उन पर अमल होता है, लेकिन ऐसे कानून बनाते समय यह भी देखना होगा कि उनका दुरुपयोग न होने पाए, क्योंकि अपने देश में यह काम भी खूब होता है।

[स्थानीय संपादकीय- पश्चिम बंगाल]