यह थरथरा देने वाली सूचना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी सर्वाधिक प्रदूषित 15 शहरों की सूची में पटना समेत बिहार के गया और मुजफ्फरपुर शहर भी शामिल हैं। इस सूची में गया चौथे, पटना पांचवें और मुजफ्फरपुर नौवें स्थान पर है। यानी ये तीनों शहर देश के टॉप टेन प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। सूबे के तीन प्रमुख शहरों की हवा में जहरीले तत्वों का अत्यधिक उच्च स्तर न सिर्फ इसके लिए जवाबदेह सरकारी एजेंसियों बल्कि आम नागरिकों और स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए भी गौरतलब है। यह ऐसी सूचना है जिसे पाने के बाद तमाम प्रगति और वैभव बेमानी प्रतीत होते हैं। यदि जीवन चलाने वाली वायु ही जानलेवा हो चुकी है तो हम कितने दिन खुद को महफूज रख पाएंगे? ऐसा नहीं कि इस तरह की रिपोर्ट पहली बार जारी हुई। विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य संस्थाएं इस तरह के संकेतक समय-समय पर जारी करते रहते हैं यद्यपि सरकार या समाज द्वारा इनकी अनदेखी किए जाने के कारण हालात लगभग बेकाबू हो चुके हैं। इससे बड़ा आत्मघात क्या हो सकता है कि प्रगति की अंधी दौड़ में भागते हुए हमने जीवन की अपरिहार्य जरूरतों हवा और पानी को भी जहरीला बना डाला। सड़कें और मकान बनाने के लिए पेड़ काट डाले। बारिश का पानी जलाशयों और भूगर्भ में संकलित करने के बजाय नदियों में बहा दिया। हर घर में बोरिंग करके धरती का गर्भ खोखला कर डाला।

बेतहाशा वाहनों की भीड़ ने हवा जहरीली कर दी। प्रकृति के साथ जो अधिकतम छेड़छाड़ संभव थी, की गई। भयावह नतीजा सामने है। यह शायद अंतिम चेतावनी है। सरकार और समाज अब भी जग जाएं और पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता मानकर काम करें तो शायद हम भावी पीढ़ियों की नजर में ‘खलनायक’ बनने से बच जाएं। पहली जरूरत है कि जलाशयों और वृक्षों का पूर्ण संरक्षण किया जाए। ऐसे दर्जनों उदाहरण मौजूद हैं कि बिल्डरों ने जलाशय पाटकर कालोनियां और काम्प्लेक्स खड़े कर दिए। सर्वोच्च न्यायालय की रूलिंग है कि यदि किसी वॉटर बॉडी पर कोई निर्माण किया गया है तो उसे ध्वस्त करके उस वॉटर बॉडी को पुनर्जीवित किया जाए? क्या बिहार में एक भी मामले में ऐसी कार्रवाई की गई?

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]