प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्रियों के साथ होने वाली बातचीत में लॉकडाउन को लेकर विशेष चर्चा होना स्वाभाविक है। इस चर्चा के आधार पर लिया जाने वाला फैसला कुछ भी हो, अब जरूरत इसकी है कि लॉकडाउन से बाहर आने की रूपरेखा बनाई जाए। विस्तारित लॉकडाउन की अवधि 3 मई को खत्म हो रही है, लेकिन कुछ राज्य यह चाह रहे हैं कि उसकी समय-सीमा और बढ़ाई जाए। तेलंगाना ने तो उसे बढ़ा भी दिया है। नि:संदेह वे अनेक राज्य लॉकडाउन बढ़ाना चाह रहे हैं जहां कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या अधिक है और जहां संक्रमण के नित-नए मामले सामने आते चले जा रहे हैं। यह समझ आता है कि इन राज्यों को संक्रमण बेलगाम होने की चिंता सता रही है, लेकिन इसी के साथ यह समझने की भी जरूरत है कि लॉकडाउन को और खींचने का औचित्य नहीं बनता।

राज्य सरकारें इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकतीं कि लॉकडाउन की एक बड़ी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ रही है और इसकी सबसे अधिक मार दिहाड़ी मजदूरों, कामगारों को चुकानी पड़ रही है। यदि लॉकडाउन और बढ़ा तो निम्न मध्यम वर्ग पर भी उसके दुष्प्रभाव में आ सकता है। इसके अलावा अर्थव्यवस्था को और अधिक क्षति भी हो सकती है। एक तो इस क्षति को वहन करना आसान नहीं और दूसरे, तथ्य यह है कि जीवन रक्षा जीविका के साधनों पर निर्भर है।

चूंकि लॉकडाउन के सार्थक नतीजे सामने आ चुके हैं और कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या के बाद भी यह दिखने लगा है कि हालात नियंत्रित रहेंगे इसलिए अर्थव्यवस्था को गति देने के उपायों पर विचार किया ही जाना चाहिए। उचित यह होगा कि हॉट-स्पॉट कहे जाने वाले कोरोना मरीजों के इलाकों में तो सख्ती और निगरानी बढ़ाई जाए, लेकिन शेष इलाकों से चरणबद्ध ढंग से पाबंदियां हटाई जाएं। आखिर यह कितना उचित है कि कुछ मोहल्लों-कॉलोनियों के हॉट-स्पॉट बन जाने की कीमत पूरा शहर चुकाए? ध्यान रहे कि जो शहर जितना बड़ा है वह विकास का उतना ही मजबूत इंजन है।

बेहतर यह होगा कि कोरोना मरीजों वाले इलाकों को सील कर दिया जाए ताकि वहां से संक्रमण फैलने की आशंका दूर हो सके और बाकी क्षेत्रों में धीरे-धीरे सामान्य गतिविधियां शुरू करने की इजाजत दी जाए। यह तय है कि इसके बाद भी शासन-प्रशासन के साथ समाज को यह सुनिश्चित करना होगा कि लोग आवश्यक सावधानी का परिचय दें। किसी को भी इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि कोरोना का खतरा टल गया है। चूंकि यह आसानी से टलने वाला भी नहीं इसलिए उसके साये में जीने की आदत डालनी होगी। यह आदत तभी पड़ेगी जब अनुशासन का परिचय देने के साथ सार्वजनिक मेल-मिलाप से बचा जाएगा।