इससे शर्मनाक और कुछ नहीं हो सकता कि अचानक धक्कामुक्की और प्रदर्शनकारियों के कारण प्रधानमंत्री का काफिला न केवल अटका रहे, बल्कि उसे वापस लौटने के लिए भी विवश होना पड़े। दुर्भाग्यवश पंजाब में ऐसा ही हुआ। यह इसलिए हुआ, क्योंकि प्रधानमंत्री का काफिला किस रास्ते से गुजरना है यह गोपनीय जानकारी प्रदर्शनकारियों तक पहुंचाई गई। आखिर यह गोपनीय सूचना किसने लीक की? इस सवाल के जवाब में यदि पंजाब पुलिस के साथ-साथ राज्य सरकार भी कठघरे में खड़ी दिख रही है तो इसके लिए वही जिम्मेदार है, क्योंकि खराब मौसम के कारण यह अंतिम क्षणों में तय हुआ था कि पंजाब के दौरे पर गए प्रधानमंत्री बठिंडा से हुसैनीवाला स्थित राष्ट्रीय शहीद स्मारक वायुमार्ग के बजाय सड़क मार्ग से जाएंगे।

न केवल इसकी गहन जांच होनी चाहिए कि यह जानकारी प्रदर्शनकारियों तक कैसे पहुंची कि प्रधानमंत्री अमुक रास्ते से गुजरने वाले हैं, बल्कि उन कारणों की तह तक भी जाना चाहिए जिनके चलते वैकल्पिक रास्ते की व्यवस्था नहीं की जा सकी। यह महज सुरक्षा में लापरवाही का नहीं, बल्कि घातक अनदेखी का मामला है। इसलिए और भी, क्योंकि यह सब पंजाब के सीमावर्ती इलाके में हुआ। ऐसे इलाके में तो प्रधानमंत्री की सुरक्षा के कहीं अधिक पुख्ता उपाय किए जाने चाहिए थे।

ऐसे उपाय करने में कैसी भयंकर हीलाहवाली का परिचय दिया गया, यह पंजाब के अफसरों से प्रधानमंत्री के इस कटाक्ष से स्पष्ट होता है कि अपने सीएम को धन्यवाद कहना कि मैं जिंदा लौट आया। इस मामले में पंजाब सरकार अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकती, न ही उसे बच निकलने का अवसर दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री की सुरक्षा से खिलवाड़ के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराकर उदाहरण पेश करने की जरूरत है। पंजाब सरकार के ढुलमुल रवैये को देखते हुए केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि दोषी लोग बचने न पाएं। यह सामान्य बात नहीं कि प्रधानमंत्री की अगवानी करने के लिए राज्य के प्रमुख अधिकारी भी नहीं पहुंचें और वह भी तब जब उनके वाहन वहां पहुंच गए थे।

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का यह आरोप और भी गंभीर है कि मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने फोन तक नहीं उठाया। यह बेहद लज्जा की बात है कि जब प्रधानमंत्री की सुरक्षा से खिलवाड़ पर पंजाब सरकार सवालों के घेरे में है तब कुछ कांग्रेसी नेताओं को मसखरी सूझ रही है। इससे यही पता चलता है कि अंधविरोध की राजनीति किस तरह नफरत में तब्दील हो चुकी है। हैरानी नहीं कि नफरत की इसी राजनीति के कारण प्रधानमंत्री की सुरक्षा की अनदेखी की गई हो। सच्चाई जो भी हो यह किसी से छिपा नहीं कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान पंजाब के किसानों के मन में प्रधानमंत्री के खिलाफ किस तरह जहर घोला गया।