चीन की धरती से उपजे कोरोना वायरस के संक्रमण ने जिस तरह पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है वह समस्त मानवता के लिए एक गंभीर संकट बन गया है। इस संकट से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन अर्थात दक्षेस के सदस्य देशों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये जो संपर्क-संवाद कायम किया वह दक्षिण एशिया के साथ-साथ पूरी दुनिया को प्रेरणा देने वाली पहल है।

इस पहल के जरिये भारतीय प्रधानमंत्री ने अपनी नेतृत्व क्षमता के साथ-साथ दूरदर्शिता का भी परिचय दिया है। निश्चित रूप से कोरोना वायरस का संक्रमण एक ऐसा संकट है जिसमें पूरी दुनिया को हर स्तर पर एकजुटता दिखाने और साथ ही सभी का सहयोग करने की जरूरत है।

दक्षेस देशों के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री मोदी की वीडियो कांफ्रेंस ने इसी जरूरत को रेखांकित किया है, लेकिन यह अच्छा नहीं हुआ कि इस कांफ्रेंस में जब अन्य सभी देशों के शासनाध्यक्षों ने भाग लिया तब पाकिस्तान ने एक तरह से अनमने ढंग से हिस्सा लिया।

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस कांफ्रेंस का हिस्सा बनने के बजाय अपने एक विशेष सहायक जफर मिर्जा को भेजा। दुर्भाग्य से उन्होंने यही संकेत दिया कि वह नेक इरादों से लैस नहीं हैं। शायद उनकी दिलचस्पी इसी में अधिक थी कि संकट के इस समय कश्मीर मामले का जिक्र कैसे किया जाए। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि उन्होंने इस वीडियो कांफ्रेंसिंग में कश्मीर मामले का उल्लेख स्वत: नहीं, बल्कि ऊपर के आदेशों से किया होगा।

पाकिस्तान के इस रवैये को देखते हुए भारत के साथ-साथ अन्य दक्षेस देशों को यह समझने की आवश्यकता है कि इस क्षेत्र में मिलकर विकास करने और साझा समस्याओं का समाधान करने में इस्लामाबाद एक रोड़ा ही अधिक है।

जो भी हो, आज की जरूरत यही है कि पड़ोसी देशों के साथ मिलकर कोरोना वायरस से उपजी चुनौती का सामना करने के लिए हरसंभव उपाय किए जाएं। यह अच्छा है कि भारत ने एक कदम आगे बढ़कर न केवल एक आपात कोष बनाने का फैसला लिया, बल्कि चिकित्सकों की एक ऐसी विशेष टीम बनाने की भी घोषणा की जो सदस्य देशों की मांग पर उनकी सहायता के लिए उपलब्ध रहेगी।

दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी वाले दक्षिण एशिया का एक प्रमुख देश होने के नाते भारत का यह दायित्व बनता है कि वह अपने साथ-साथ पड़ोसियों की भी चिंता करे। यह वही भाव है जो वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवंतु सुखिन: के मंत्र से उपजा है। यह अच्छी बात है कि मोदी ने जैसी पहल दक्षिण एशियाई देशों को साथ लेकर की वैसी ही जी-20 देशों के साथ भी करने का प्रस्ताव दिया।