हैदराबाद में आयोजित भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने परिवारवादी दलों पर जिस तरह निशाना साधा उससे यह नए सिरे से स्पष्ट हो रहा है कि भाजपा ऐसे दलों के खिलाफ अपना अभियान और तेज करने वाली है। प्रधानमंत्री एक अर्से से परिवारवाद की राजनीति को लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा बता रहे है। यह सही भी है, क्योंकि परिवारवाद की राजनीति एक तरह की सामंतशाही है और लोकतंत्र में सामंतवादी मानसिकता के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता।

विडंबना यह है कि अपने देश में परिवारवाद की राजनीति बिना किसी रोक-टोक के बढ़ती जा रही है और अब तो वह न केवल बेलगाम हो रही है, बल्कि उसके पक्ष में तरह-तरह की दलीलें भी दी जाने लगी हैं। परिवारवाद की राजनीति की शुरुआत कांग्र्रेस ने की थी और एक तरह से प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसकी आधारशिला रखी थी। इसके बाद कांग्रेस परिवारवाद की राजनीति का पर्याय और प्रतीक बनकर रह गई। आज उसकी दुर्दशा का एक बड़ा कारण परिवारवाद की राजनीति ही है।

एक समय था जब अन्य राजनीतिक दल कांग्रेस का विरोध इस आधार पर करते थे कि वह वंशवाद की राजनीति को पोषित कर रही है, लेकिन वक्त के साथ ऐसे दलों ने भी इसी राजनीति को अपना लिया। आज स्थिति यह है कि एक दो दलों को छोड़कर सभी दल वंशवाद को पोषित करने में लगे हुए हैं। यह न तो इन दलों के लिए ठीक है और न ही भारतीय लोकतंत्र के लिए।

वंशवाद की राजनीति के कारण दलों में आंतरिक लोकतंत्र का जो अभाव है, वह लगातार बढ़ता जा रहा है। अब तो कुछ दल ऐसे भी हैं, जिनमें पार्टी प्रमुख के परिवार का प्रत्येक बालिग सदस्य राजनीति में सक्रिय है। ऐसे दलों में यह पहले से तय होता है कि उनकी कमान पार्टी प्रमुख के परिवार का सदस्य ही संभालेगा। कुछ दलों में तो तीसरी पीढ़ी उनका नेतृत्व संभालने के लिए तैयार होती दिख रही है। आखिर ऐसे दल लोकतांत्रिक मूल्यों और मर्यादाओं की बात कैसे कर सकते हैं।

वैसे भाजपा भी परिवारवाद की राजनीति से अछूती नहीं है। भाजपा के ऐसे अनेक नेता हैं जिनके बेटे-बेटियां राजनीति में सक्रिय हैं, लेकिन अब इसके संकेत भी दिख रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी इस सिलसिले को थामने के लिए सक्रिय हैं। परिवारवाद की राजनीति तब और अधिक लोकतंत्र विरोधी हो जाती है जब पार्टी विशेष में सब कुछ उसके प्रमुख ही तय करते हैं। इसमें हर्ज नहीं कि किसी नेता का बेटा अथवा बेटी राजनीति में सक्रिय हो, लेकिन एक तो इसके मानक बनने चाहिए और दूसरे, यह बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए कि पार्टी की कमान एक परिवार विशेष के सदस्यों के हाथों में रहे।