अपनी सरकार का दो साल का कार्यकाल पूरा होने पर सहारनपुर में आयोजित रैली में प्रधानमंत्री की ओर से की गई यह घोषणा स्वागतयोग्य है कि अब सरकारी चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति आयु 65 साल होगी। इस घोषणा के संदर्भ में उन्होंने यह सूचित किया कि अगले सप्ताह ही केंद्रीय मंत्रिमंडल इस पर मुहर लगा देगा। अपनी इस घोषणा के जरिये प्रधानमंत्री ने देश का ध्यान डॉक्टरों की कमी की समस्या की ओर आकृष्ट किया। चूंकि इस फैसले के दायरे में राज्य सरकारों के अधीन कार्यरत चिकित्सक भी आएंगे इसलिए चिकित्सकों की कमी पूरी होने में अच्छी-खासी मदद मिलेगी। किसी न किसी स्तर पर इसका लाभ आम जनता को भी मिलेगा। अच्छा होता कि ऐसा कोई फैसला पहले ही ले लिया जाता। यह आश्चर्यजनक है कि इसके पहले इस बारे में किसी ने क्यों नहीं सोचा? डॉक्टर कहीं अधिक आसानी से 65 वर्ष तक अपनी सेवाएं दे सकते हैं। अभी ज्यादातर राज्यों में उनकी सेवानिवृत्ति 60 वर्ष में हो जाती है। कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां सेवानिवृत्ति 62 वर्ष में होती है। केंद्र और राज्य स्वास्थ्य सेवाओं के चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष करने से एक बड़ी राहत मिलेगी, लेकिन सरकारी स्वास्थ्य ढांचे की समस्या केवल इतनी ही नहीं है कि वह डॉक्टरों की कमी का सामना कर रहा है। सरकारी स्वास्थ्य ढांचा कई तरह की समस्याओं से ग्रस्त है। इन समस्याओं का समाधान तभी संभव है जब राज्य सरकारें पर्याप्त गंभीरता का परिचय दें।

राज्य सरकारों के नीति-नियंता इससे अपरिचित नहीं हो सकते कि डॉक्टरों की कमी का एक कारण यह भी है कि मेडिकल कॉलेजों से निकले युवा डॉक्टर आम तौर पर प्रांतीय स्वास्थ्य सेवाओं का हिस्सा नहीं बनना चाहते। इसकी वजह प्रतिकूल कार्य दशाएं और अपर्याप्त सुविधाएं भी हैं। सरकारी स्वास्थ्य ढांचा डॉक्टरों की कमी के अलावा जिन अन्य समस्याओं से ग्रस्त है उनके समाधान की भी कोई ठोस पहल होनी चाहिए। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि ज्यादातर सरकारी अस्पताल आम लोगों का भरोसा खोते जा रहे हैं। स्थिति यह है कि एक बड़ी संख्या में सरकारी अस्पताल ऐसे हैं जहां लोग मजबूरी में ही जाना पसंद करते हैं। यह ठीक है कि समय के साथ निजी स्वास्थ्य सेवाओं ने आकार लिया है और बड़ी संख्या में नर्सिंग होम और निजी अस्पताल खुले हैं। आम तौर पर उनमें उपचार महंगा होता है। इसलिए निर्धन वर्ग चाहकर भी उनकी सेवाएं नहीं ले पाता। यह ठीक नहीं कि एक ओर तो देश मेडिकल टूरिज्म के लिए जाना जाने लगा है और दूसरी ओर आम आदमी को उपचार के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं। इस विडंबना का कोई समाधान खोजा ही जाना चाहिए, क्योंकि भारत की गिनती रोगग्रस्त लोगों के देश के रूप में होती है। नि:संदेह इसकी एक वजह सेहत के प्रति जागरूकता का अभाव है, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि आम जनता को वैसी स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध नहीं जैसी उपलब्ध होनी चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को जितना ध्यान सरकारी स्वास्थ्य ढांचे को सुधारने में लगाना चाहिए उतना ही मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता पर भी।

[ मुख्य संपादकीय ]