चिकित्सकों एवं प्रदेश सरकार के बीच एक बार फिर टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। पोस्ट ग्र्रेजुएट (एमएस और एमडी) सीटों में कोटा और सर्विस रूल सहित डाक्टरों की नई भर्ती की मांग को लेकर जहां सरकारी चिकित्सक सोमवार से हड़ताल पर जाने पर अडिग हैं वहीं सरकार ने डॉक्टरों की हड़ताल को अवैध घोषित करते हुए आवश्यक सेवा संरक्षण अधिनियम यानी एस्मा लगा दिया है। कोई भी पक्ष झुकने को तैयार नहीं है। ऐसे में प्रदेश में चिकित्सकीय सेवाओं का चरमराना तय है। वास्तव में यदि प्रदेश में सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता की बात करें तो स्थिति दयनीय है। स्वीकृत करीब पौने चार हजार चिकित्सकों के पदों में से एक तिहाई से अधिक खाली हैं। आबादी के लिहाज से देखा जाए तो वर्तमान में प्रदेश को करीब दस हजार चिकित्सक चाहिए। प्रदेश में करीब छह दर्जन सामान्य अस्पताल, सवा सौ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और पौने पांच सौ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं लेकिन शायद ही कहीं स्टाफ पूरा हो।
वैसे वर्तमान सरकार स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर बदलने के लिए लगातार प्रयासरत तो है, लेकिन अपेक्षित सुधार नजर नहीं आ रहा है। हालांकि उसका लक्ष्य है कि प्रदेश के हर जिले में कम से कम एक मेडिकल कॉलेज अवश्य हो। यदि इस मिशन में कामयाबी मिलती है तो ऐसे में प्रदेश में हर साल दो हजार चिकित्सकों की पौध तैयार होगी। रिक्तियों का दंश झेल रहे अस्पतालों को डॉक्टर मिलेंगे, लेकिन यह अभी दीर्घकालिक प्रक्रिया है। सरकार को चिकित्सकों के साथ मिल-बैठकर समस्या का स्थायी हल निकाले। टकराव की स्थिति कोई पहली बार नहीं है। हर चार-छह माह में ऐसे हालात पैदा हो रहे हैं। इसलिए सरकार को अपनी चिकित्सक भर्ती नीति में आमूल-चूल परिवर्तन करना होगा। सरकारी चिकित्सकों को बेहतर सुविधाएं मुहैया करानी होंगी ताकि उनके निजी क्षेत्र की ओर रुख करने की नौबत ही न आए। रिक्त पदों को जल्दी भरना होगा। चिकित्सकों को भी चाहिए कि वे टकराव की बजाय सरकार के साथ मिल-बैठकर समस्या का समाधान निकाले।

[ स्थानीय संपादकीय:  हरियाणा ]