राष्ट्रीय जनप्रतिनिधि सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने जनप्रतिनिधियों से विकास के लिए एकजुट होकर काम करने की जरूरत पर बल देते हुए यह सही कहा कि अब संघर्ष और आंदोलन की राजनीति का वक्त नहीं है, लेकिन यह कहना कठिन है कि पक्ष-विपक्ष के सांसद-विधायक इस बात को समझने के लिए तैयार होते हैैं। नि:संदेह आज उन्हीं जनप्रतिनिधियों की कदर है और वे ही बार-बार निर्वाचित होते हैैं जो राजनीति से इतर जनता के हितों के लिए काम करते हैैं, लेकिन अभी भी एक बड़ी संख्या में ऐसे सांसद-विधायक हैैं जो अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास को पहली प्राथमिकता देने के बजाय जोड़-तोड़ की राजनीति में समय जाया करते हैैं। ऐसे सांसदों और विधायकों को चेतना होगा और अगर वे नहीं चेतते तो जनता को उन्हें सबक सिखाने के लिए तैयार रहना होगा, क्योंकि यह देखने में आ रहा है कि कई सांसद-विधायक इसमें दिलचस्पी नहीं लेते कि उनके इलाके में विभिन्न सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों पर अमल सही तरह हो रहा है या नहीं? इस मामले में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि आदर्श ग्राम योजना में रुचि दिखाने वाले सांसदों की संख्या गिनती की ही है।

हैरत यह है कि भाजपा के भी तमाम सांसदों ने इस योजना में दिलचस्पी दिखाने से इन्कार किया। ऐसी स्थिति क्यों बनी, इस पर सरकार के साथ-साथ पक्ष-विपक्ष के राजनीतिक दलों को भी विचार करना चाहिए। यह जन प्रतिनिधियों का प्राथमिक दायित्व होना चाहिए कि वे अपने क्षेत्र में विकास कार्यों की गति-प्रगति पर निगाह रखें। इसके लिए किसी तंत्र की आवश्यकता हो तो उसका भी निर्माण किया जाना चाहिए, क्योंकि विकास के कामों को केवल नौकरशाही के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। सच तो यह है कि विकास के कामों में जनप्रतिनिधियों के साथ आम जनता की भी भागीदारी होनी चाहिए।

हालांकि प्रधानमंत्री ने विकास की प्रक्रिया में जनसहभागिता का उल्लेख किया, लेकिन तथ्य यह है कि सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों में जनता की भागीदारी को बढ़ाने के लिए बहुत कुछ किया जाना शेष है। एक ऐसे समय जब अन्य देशों में जनभागीदारी की दिशा में उल्लेखनीय पहल हो रहे हैैं तब इसका कोई औचित्य नहीं कि भारत केवल इस पर गर्व करता रहे कि वह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। बड़े लोकतंत्र को बेहतर बनाने की जरूरत है और यह काम तब हो सकेगा जब विकास के कामों में जनता की भागीदारी सचमुच बढ़ेगी। राष्ट्रीय जनप्रतिनिधि सम्मेलन के आयोजन की पहल लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इस मकसद से की ताकि सांसद और विधायक विकास के कार्यों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकें। बेहतर हो कि इस सम्मेलन के जरिये शासन और प्रशासन न केवल इससे अवगत हो कि विकास के कामों को गति देने में सांसदों और विधायकों को किस तरह की समस्याएं आड़े आती हैैं, बल्कि इन समस्याओं को दूर करने के प्रयास भी किए जाएं। अच्छा हो कि

इस सबका सिलसिला सबसे पिछड़े 115 जिलों से शुरू किया जाए। इस मामले में कोई नजीर कायम करने की जरूरत है। यदि इन पिछड़े जिलों की सूरत बदलने में सफलता मिल जाती है तो देश के समग्र विकास का लक्ष्य और आसान हो जाएगा।

[ मुख्य संपादकीय ]