पटना हाईकोर्ट ने ध्वनि प्रदूषण की खतरनाक स्थिति पर राज्य सरकार और बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से नाराजगी जताई है। कोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार से चार सप्ताह में रिपोर्ट देने को कहा है। पूछा है कि ध्वनि प्रदूषण लगातार बढ़ रहा। रोकथाम के लिए कौन सी योजना बनी है? वास्तविक स्थिति क्या है? दरअसल, लोकहित याचिका दाखिल की गई है हाईकोर्ट में। याचिकाकर्ता का कहना है कि शहर में बेमतलब तेज हॉर्न बजाए जाते हैं। स्कूल, अस्पताल या कोर्ट कचहरी की परवाह नहीं की जाती। रात में लाउडस्पीकर बजते रहते हैं। कोई रोकने वाला नहीं। याचिकाकर्ता ने सही सवाल उठाए हैं। दरअसल, हाईकोर्ट ने पिछले दो साल में कई बार ध्वनि और वायु प्रदूषण पर चिंता जताई है। रिपोर्ट मांगी और निर्देश दिए हैं, लेकिन यह सचाई है कि राजधानी पटना में भी ऐसी कोई एजेंसी नहीं, जो बिना किसी शिकायत के खुद जांच करे, दोषियों को पकड़े और उन्हें सजा दिलाए। राज्य के अन्य शहरों का हाल तो और बुरा है। पुलिस सिर्फ साप्ताहिक और दैनिक जागरूकता कार्यक्रमों में ही थोड़ी सक्रिय दिखती है।

वायु प्रदूषण के मामले में भी पटना की स्थिति खराब है। आबोहवा दिन-प्रतिदिन जहरीली होती जा रही है। पटना देश के सबसे अधिक प्रदूषित 10 शहरों में एक है। जहरीली हवा वाले शहर में स्मार्ट सिटी की बात तो हास्यास्पद हो जाती है। प्रदूषण का कारण अनियोजित निर्माण, बालू खनन और पुराने खटारा वाहनों से निकलने वाला धुआं है। धुआं उगलने वाले जनरेटर को हटाकर साइलेंट जनरेटर का उपयोग करने की बात हुई थी, लेकिन आज भी बाजारों में शोर मचाते जनरेटर देखे जा सकते हैं। गर्मी का मौसम आ रहा। इस समय वायु प्रदूषण की वजह से स्थिति और बिगड़ती है। सड़क पर निकलने वाला प्रत्येक नागरिक धूल और धुआं की चपेट में आता है। जरूरत है कि हाईकोर्ट के निर्देश पर ही सही, सरकार प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्रभावी तंत्र बनाए। एक ऐसा तंत्र जो पूरे वर्ष रात-दिन प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण जागरूकता के बारे में काम करे। सख्ती जरूरी है, साथ ही जागरूकता भी।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]