केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड यानी सीबीएसई की ओर से दसवीं की गणित और बारहवीं की अर्थशास्त्र की परीक्षा फिर से कराने की घोषणा से यही प्रकट होता है कि इन दोनों विषयों के प्रश्नपत्र न केवल लीक हो गए, बल्कि बड़े पैमाने पर वितरित भी कर दिए गए। यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा कि यह आपराधिक कृत्य किसने और कितने बड़े पैमाने पर किया, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि इस कारण देश के लाखों छात्रों पर तुषारापात हुआ है। गणित की परीक्षा के साथ ही दसवीं के ज्यादातर छात्रों की परीक्षा खत्म हो गई थी और वे इससे खुश थे कि परीक्षा का बोझ सिर से उतरा, लेकिन उनके राहत की सांस लेने के पहले ही यह खबर आ गई कि इस विषय की परीक्षा फिर से देनी होगी। चूंकि हाईस्कूल में गणित अनिवार्य होती है इसलिए सभी छात्रों को नए सिरे से परीक्षा की चिंता करनी होगी। इनकी संख्या 16 लाख से भी अधिक है।

नि:संदेह इंटरमीडिएट के केवल उन्हीं छात्रों को दोबारा परीक्षा के दौर से गुजरना होगा जो अर्थशास्त्र की पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन आखिर इसका क्या मतलब कि करे कोई और भरे कोई? यह किसी त्रासदी से कम नहीं कि लाखों छात्रों को उस विषय की परीक्षा में फिर से देने के लिए विवश होना पड़े जिसे वह पहले दे चुके हैैं। चूंकि दसवीं की गणित और बारहवीं की अर्थशास्त्र की परीक्षा दोबारा होने से लाखों छात्रों और अभिभावकों के साथ-साथ शिक्षकों को भी अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ेगा इसलिए इन विषयों के पर्चे लीक होने के मामले में उदाहरण पेश करने वाली कोई ठोस कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसा इसलिए और भी आवश्यक है, क्योंकि सीबीएसई बोर्ड की परीक्षा की शुचिता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लग गया है। समझना कठिन है कि एक ऐसे समय जब हर तरह की परीक्षाओं के पर्चे लीक होने का खतरा कहीं अधिक बढ़ गया है तब किसी ने यह सुनिश्चित क्यों नहीं किया कि सीबीएसई परीक्षा की गोपनीयता बनाए रखने के तंत्र में सेंध न लगने पाए?

इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि मानव संसाधन विकास मंत्री ने दो विषयों की परीक्षा फिर से कराए जाने की नौबत आने पर खेद जताया और प्रधानमंत्री ने भी नाराजगी प्रकट की, क्योंकि बीते कुछ समय से विभिन्न परीक्षाओं के पर्चे लीक होने का सिलसिला कायम है। चंद दिनों पहले ही कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा के पर्चे लीक होने के मामले की जांच सीबीआइ को सौंपनी पड़ी थी। इसके पहले भी अन्य कई परीक्षाओं के पर्चे लीक हो चुके हैैं। यह ठीक नहीं कि प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ-साथ स्कूल और कॉलेज स्तर की परीक्षाओं के भी पर्चे लीक होने लगें। पर्चे लीक होने का सिलसिला संबंधित संस्थाओं के साथ ही शासन तंत्र की विश्वसनीयता को भी चोट पहुंचाता है। छात्रों के साथ-साथ आम जनता के मन में यह धारणा गहराती है कि अब हर कहीं सेंध लगाना आसान हो गया है। बेहतर हो कि हमारे नीति-नियंता यह समझें कि अगर परीक्षा आयोजन के तौर-तरीकों में आमूल-चूल परिवर्तन नहीं लाया जाता तो परीक्षाओं के पर्चे लीक ही होते रहेंगे।

[ मुख्य संपादकीय ]