इस पर हैरानी नहीं कि ऐसे तथ्य सामने आ रहे हैं कि पाकिस्तान अपने यहां के आतंकी ढांचे को खत्म करने के लिए कुछ भी नहीं कर रहा है। आतंकी ढांचे को खत्म करने की घोषणा कर कुछ न करना पाकिस्तान की पुरानी आदत है। इस तरह की खोखली घोषणाएं कर पाकिस्तानी शासनाध्यक्ष एक अर्से से दुनिया की आंखों में धूल झोंकने का काम कर रहे हैं।

इमरान खान भी पुराने शासकों की राह पर चल रहे हैं और इसके पीछे मकसद है अंतरराष्ट्रीय दबाव से मुक्ति पाना ताकि कर्ज लेने में आसानी हो और एफएटीएफ कोई सख्त रवैया न अपनाए। अभी इस संस्था ने पाकिस्तान को ग्रे सूची में डाल रखा है और यह चेतावनी दी है कि अगर उसने अपने यहां के आतंकी ढांचे को खत्म नहीं किया तो उसे काली सूची में डाला जा सकता है।

पाकिस्तान इसी से बचना चाह रहा है और इसीलिए इमरान खान की ओर से पहले यह कहा गया कि वह आतंकी संगठनों पर लगाम लगाएंगे और फिर यह कि आतंकी ढांचा हमारे किसी काम का नहीं। इन बयानों पर यकीन न करने के अच्छे-भले कारण हैं। दो-चार आतंकियों की गिरफ्तारी या नजरबंदी के अलावा पाकिस्तान से ऐसी कोई खबर नहीं आई कि बड़े पैमाने पर जिहादियों की धर-पकड़ की जा रही है।

अगर ऐसा कुछ किया गया होता तो उसकी कोई न कोई प्रतिक्रिया अवश्य देखने को मिलती। कहीं कोई प्रतिक्रिया इसीलिए नहीं हुई, क्योंकि आतंकियों के खिलाफ कुछ किया ही नहीं गया। पठानकोट और पुलवामा हमले के लिए जिम्मेदार आतंकी संगठन जैश ए मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर के बारे में यही सूचनाएं आ रही हैं कि वह पाकिस्तानी सेना की खुफिया एजेंसी आइएसआइ की सुरक्षा में है। ऐसी ही सूचना एक अन्य आतंकी सरगना दाऊद इब्राहिम के बारे में भी है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि लश्करे तैयबा के सरगना हाफिज सईद की नजरबंदी वास्तव में उसकी हिफाजत का इंतजाम है।

इन दिनों भारत के राजनीतिक दल इमरान खान के इस बयान की अपने-अपने ढंग से व्याख्या करने में लगे हुए हैं कि अगर नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनते हैं तो भारत से शांतिपूर्ण संबंध कायम होने के आसार हैं। चुनाव के इस मौके पर एक-दूसरे के प्रति हमलावर राजनीतिक दल इमरान खान के इस बयान का मनचाहा मतलब निकालने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन ऐसे आरोप हास्यास्पद ही हैं कि दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों में कोई समझ-बूझ कायम हो गई है।

बेहतर होता कि इस बात को समझा जाता कि इमरान खान के इस बयान का उद्देश्य दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह भारत से संबंध सुधारने के इच्छुक हैं। विश्व समुदाय इमरान खान के इस बयान को चाहे जिस रूप में ले, भारत को सतर्क रहना होगा। इतना ही नहीं, उसे पाकिस्तान को बेनकाब करने की अपनी कोशिश भी जारी रखनी चाहिए। इस क्रम में यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि विश्व समुदाय और खासकर एफएटीएफ में असर रखने वाले देश पाकिस्तान के छलावे में न आने पाएं। इसके पूरे आसार हैं कि एफएटीएफ की अगली बैठक में चीन पाकिस्तान के बचाव की कोशिश कर सकता है।