सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत के इस कथन पर हैरानी नहीं कि पाकिस्तान कश्मीर में हालात बिगाड़ने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान यह काम न जाने कब से कर रहा है, लेकिन जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद वह घाटी में आतंक फैलाने पर कुछ ज्यादा ही आमादा है। कश्मीर में दबे-छिपे आतंकियों की ओर से गैर-कश्मीरियों को चुन-चुन कर निशाना बनाने और व्यापारियों को धमकाने के मामले यही बता रहे हैैं कि पाकिस्तान बुरी तरह बौखलाया हुआ है। इसी बौखलाहट में वह संघर्ष विराम का रह-रहकर उल्लंघन करने में लगा हुआ है। चूंकि इस सबके साथ वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ दुष्प्रचार भी छेड़े हुए है इसलिए भारत के सामने दोहरी चुनौती है।

भारत को एक ओर कश्मीर में पाकिस्तान पोषित-प्रेरित आतंकियों से निपटना है और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसके दुष्प्रचार की काट भी करनी है। यह चुनौती इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि कश्मीर को रही-सही पाबंदियों से मुक्त करने की मांग भी तेज हो रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही इस मांग का एक बड़ा कारण अमेरिकी, ब्रिटेन सरीखे देशों के साथ विश्व समुदाय का इससे अनभिज्ञ होना है कि कश्मीर समस्या वास्तव में है क्या? मलेशिया और तुर्की की ओर से कश्मीर को लेकर दिए गए बयानों ने इस अनभिज्ञता को ही रेखांकित किया।

पिछले दिनों अमेरिकी संसद की विदेश मामलों की एक समिति में हुई चर्चा ने यही प्रकट किया कि अमेरिका कश्मीर पर सतही जानकारी ही रखता है। यही कारण रहा कि इस चर्चा के बाद भारत को यह कहना पड़ा कि अमेरिकी सांसद भारतीय लोकतंत्र के बारे में पर्याप्त समझ नहीं रखते। समझ के इस अभाव के लिए कहीं न कहीं वह नीति जिम्मेदार है जिसके तहत अभी हाल तक भारत कश्मीर को लेकर रक्षात्मक रवैया अपनाए रहा। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि कश्मीर के मामले में खलनायक होने के बाद भी पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह प्रतीति कराता रहा कि उसे भारत के इस हिस्से में हस्तक्षेप करने का अधिकार है।

यह एक विडंबना ही रही कि पाकिस्तान तो कश्मीर के हालात को लेकर दुनिया भर में हल्ला मचाता रहा, लेकिन भारत ने गुलाम कश्मीर की दयनीय दशा को कभी मुद्दा नहीं बनाया। कम से कम अब तो यह सुनिश्चित किया ही जाना चाहिए कि पाकिस्तान का छल-कपट हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर बेनकाब हो। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि दिवाली के दिन लंदन में कश्मीर को लेकर पाकिस्तान प्रायोजित आयोजन पर भारत ने अपनी चिंता जताई। भारत को इसके आगे तक जाना चाहिए और ऐसे भारत विरोधी आयोजनों पर ब्रिटिश सरकार से कड़ी आपत्ति जतानी चाहिए।