एक दूसरे का पक्ष न समङो जाने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले लाहुल-स्पीति के कांग्रेस विधायक रवि ठाकुर उपायुक्त का तबादला न करने पर पद छोड़ने की धमकी दे चुके हैं
 जनप्रतिनिधि का दायित्व जनता की समस्याओं को समझना व अपने दायित्व के प्रति ईमानदार प्रयास करना है। जनता की मूलभूत जरूरतों को समझकर उनके हल की दिशा में प्रयास करने वाला ही सही मायनों में सच्चा प्रतिनिधि होता है। जनप्रतिनिधि के लिए कई बार जनता व सरकार के बीच एक को चुनने का विकल्प होता है, जो हितों का टकराव की वजह बनता है। उसके सामने दो विकल्प होते हैं। पहला सरकार, जिसमें वह सहयोगी की भूमिका में है और दूसरा वह जनता, जिसने अमूल्य वोट देकर उसे प्रतिनिधि बनने का सौभाग्य दिया होता है। बिलासपुर जिले के घुमारवीं के विधायक व प्रदेश सरकार में मुख्य संसदीय सचिव राजेश धर्माणी ने अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। उन्होंने सरकार को चेताया है कि उनके विधानसभा क्षेत्र की दो पंचायतों छत व दाबला से ऊना प्रतिनियुक्ति पर भेजी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का तबादला रद न हुआ तो वह इन पंचायतों के लोगों के धरने में शामिल होंगे। सरकार में शामिल धर्माणी स्वास्थ्य मंत्री से मामला उठाते रहे व तबादले रद होने के आश्वासन भी उन्हें मिलते रहे, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हो पाया। दोनों कर्मचारियों का वेतन इन पंचायतों के खाते से जा रहा है जबकि उनकी तैनाती किसी दूसरे जिले में है। हितों के टकराव का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले लाहुल-स्पीति के कांग्रेस विधायक रवि ठाकुर भी वहां के उपायुक्त का तबादला न करने पर पद छोड़ने की धमकी दे चुके हैं। कारण यह था कि उपायुक्त उनकी बात नहीं मानते थे व जनता के काम नहीं हो पा रहे थे। अंतत: सरकार को उपायुक्त को बदलना पड़ा था। जनता के हित आने पर दोनों मामलों में प्रतिनिधियों ने जनता को ही चुना। कारण यही है कि उनकी जवाबदेही जनता से जुड़ी है। अगर जनता परेशान है तो प्रतिनिधि उसकी अनदेखी नहीं कर सकता। धर्माणी व रवि ठाकुर ने विरोध के स्वर उठाकर जता दिया कि उनके लिए जनता के हित सवरेपरि है। ऐसे मामलों को सरकारी स्तर पर हल्के से नहीं लेना चाहिए। ऐसी नौबत ही नहीं आने दी जानी चाहिए, जिससे कहीं से विरोध के स्वर मुखर होने की संभावना बनती है। अफसरशाही पर इतना नियंत्रण होना ही चाहिए कि सरकारी आदेशों का पालन करने में कोई सुस्ती न हो।
एक दूसरे का पक्ष न समङो जाने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले लाहुल-स्पीति के कांग्रेस विधायक रवि ठाकुर उपायुक्त का तबादला न करने पर पद छोड़ने की धमकी दे चुके हैं
जनप्रतिनिधि की पीड़ा11जनप्रतिनिधि का दायित्व जनता की समस्याओं को समझना व अपने दायित्व के प्रति ईमानदार प्रयास करना है। जनता की मूलभूत जरूरतों को समझकर उनके हल की दिशा में प्रयास करने वाला ही सही मायनों में सच्चा प्रतिनिधि होता है। जनप्रतिनिधि के लिए कई बार जनता व सरकार के बीच एक को चुनने का विकल्प होता है, जो हितों का टकराव की वजह बनता है। उसके सामने दो विकल्प होते हैं। पहला सरकार, जिसमें वह सहयोगी की भूमिका में है और दूसरा वह जनता, जिसने अमूल्य वोट देकर उसे प्रतिनिधि बनने का सौभाग्य दिया होता है। बिलासपुर जिले के घुमारवीं के विधायक व प्रदेश सरकार में मुख्य संसदीय सचिव राजेश धर्माणी ने अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। उन्होंने सरकार को चेताया है कि उनके विधानसभा क्षेत्र की दो पंचायतों छत व दाबला से ऊना प्रतिनियुक्ति पर भेजी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का तबादला रद न हुआ तो वह इन पंचायतों के लोगों के धरने में शामिल होंगे। सरकार में शामिल धर्माणी स्वास्थ्य मंत्री से मामला उठाते रहे व तबादले रद होने के आश्वासन भी उन्हें मिलते रहे, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हो पाया। दोनों कर्मचारियों का वेतन इन पंचायतों के खाते से जा रहा है जबकि उनकी तैनाती किसी दूसरे जिले में है। हितों के टकराव का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले लाहुल-स्पीति के कांग्रेस विधायक रवि ठाकुर भी वहां के उपायुक्त का तबादला न करने पर पद छोड़ने की धमकी दे चुके हैं। कारण यह था कि उपायुक्त उनकी बात नहीं मानते थे व जनता के काम नहीं हो पा रहे थे। अंतत: सरकार को उपायुक्त को बदलना पड़ा था। जनता के हित आने पर दोनों मामलों में प्रतिनिधियों ने जनता को ही चुना। कारण यही है कि उनकी जवाबदेही जनता से जुड़ी है। अगर जनता परेशान है तो प्रतिनिधि उसकी अनदेखी नहीं कर सकता। धर्माणी व रवि ठाकुर ने विरोध के स्वर उठाकर जता दिया कि उनके लिए जनता के हित सवरेपरि है। ऐसे मामलों को सरकारी स्तर पर हल्के से नहीं लेना चाहिए। ऐसी नौबत ही नहीं आने दी जानी चाहिए, जिससे कहीं से विरोध के स्वर मुखर होने की संभावना बनती है। अफसरशाही पर इतना नियंत्रण होना ही चाहिए कि सरकारी आदेशों का पालन करने में कोई सुस्ती न हो।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]