झारखंड के सरकारी विद्यालयों को निजी विद्यालयों के समकक्ष लाने की तैयारी है। सरकार की कोशिश शिक्षा के राष्ट्रीय बेंचमार्क पर राज्य के शिक्षण संस्थानों में कई घटकों में आई गिरावट को पाटने की है। इसके लिए वर्तमान शिक्षा पद्धति में कई स्तरों पर बदलाव के संकेत हैं। इस बाबत सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान तथा शिक्षक प्रशिक्षण जैसी योजनाओं को समाहित कर ‘समग्र शिक्षा अभियान’ की नींव रखी जा रही है। इसके तहत नए विद्यालय खोलने तथा छोटे स्कूलों को एक दूसरे में मर्ज कर उसका उन्नयन करना शामिल है। ऐसे विद्यालयों में निजी स्कूलों की ही तरह केजी से बारहवीं तक की पढ़ाई के प्रावधान किए जा रहे हैं। केंद्र के प्रोग्राम एप्रूवल बोर्ड में यह मसौदा अगले महीने रखा जाएगा। राज्य की चरमराई शिक्षा व्यवस्था के बीच गुणवत्तायुक्त शिक्षण पद्धति विकसित किए जाने की इस सरकारी कवायद की सराहना की जानी चाहिए। इससे इतर किसी भी व्यवस्था को प्रभावी बनाए जाने से पूर्व उसका हर स्तर पर मूल्यांकन करना श्रेयस्कर होगा। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की परिकल्पना को धरातल पर उतारने से पूर्व रिक्त पदों पर योग्य शिक्षकों की बहाली, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, शिक्षक प्रशिक्षण आदि पर खास फोकस करना होगा, जिसका यहां सतत अभाव है।

बहरहाल केंद्र के दिशानिर्देश पर राज्य में ऐसा पहली बार होगा, जब कंपोजिट स्कूलों को छात्रों की संख्या के आधार पर जहां एकमुश्त वार्षिक ग्रांट मिलेंगे, वहीं सुदूर क्षेत्रों में अध्ययनरत बच्चों के लिए ट्रांसपोर्ट की सुविधा बहाल की जाएगी। चाहे बच्चों को निश्शुल्क किताबें देने की बात हो अथवा पोशाक देने का मसौदा, संबंधित राशि डीबीटी के जरिए बच्चों के बैंक खाते में पहुंचेगी। शिक्षण व्यवस्था को और भी चुस्त-दुरूस्त करने के लिए कई जिलों में डिस्टिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डायट) की स्थापना भी इस नई शिक्षण व्यवस्था का हिस्सा होगा। पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों के समग्र विकास के लिए स्कूलों में खेल और शारीरिक शिक्षा की भी पढ़ाई होगी। कस्तूरबा एवं अन्य आवासीय विद्यालयों के अलावा 500 से अधिक छात्र बल वाले स्कूलों में कंप्यूटर लैब तथा स्मार्ट क्लास होंगे। मान्यता प्राप्त तथा अनुदानित मदरसों में भी सामान्य स्कूलों की तरह पाठ्यक्रम होंगे। शैक्षणिक व्यवस्था में बदलाव कर शिक्षा का स्तर ऊंचा उठाने की कवायद पूर्व में भी हुई है। देखना यह होगा कि इस दूरदर्शी बदलाव के प्रति सरकारी महकमा किस हद तक अपने दायित्वों का निर्वहन करता है।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]