कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों की बैठक का उद्देश्य यदि कोरोना संकट का सामना करने में केंद्र सरकार और देश की जनता की मदद करना था तो वह पूरा होता नहीं दिखा। कुछ विपक्षी दलों की अनुपस्थिति से दो-चार हुई यह बैठक महज आलोचना के लिए आलोचना की उक्ति चरितार्थ करती नजर आई। इस बैठक में कथित तौर पर समान सोच वाले दलों ने भागीदारी की। इसका मतलब जो भी हो, लेकिन यह ठीक नहीं कि जब कोरोना कहर सरीखे अनुमान से कहीं अधिक नुकसान पहुंचाने वाले संकट का सामना करने में दलगत हितों से परे हटने की जरूरत थी तब जाने-अनजाने राजनीतिक एकजुटता को भंग करने की कोशिश की गई।

राजनीतिक एकजुटता का अभाव तो कोरोना संकट का मुकाबला करने में कठिनाई ही पैदा करेगा। वक्त की जरूरत यही थी कि इस कठिन समय दलगत हितों को प्राथमिकता देने वाली राजनीति से बचा जाता, लेकिन पता नहीं क्यों विपक्ष ने यह जरूरी नहीं समझा? इससे इन्कार नहीं कि कोरोना वायरस के संक्रमण से उपजे कठिन हालात का मुकाबला करने में तमाम मुश्किलें पेश आ रही हैं, लेकिन यह स्थिति तो करीब-करीब हर देश की है। कोई भी देश और यहां तक कि भारत से कहीं अधिक समर्थ और संपन्न देश भी कोरोना कहर का मुकाबला करने में ढेरों परेशानियों से जूझ रहे हैं।

यह अजीब है कि विपक्षी दल संकट की गंभीरता से परिचित होते हुए भी यह दिखा रहे हैं जैसे वे अचानक आई इस आपदा का अनुमान लगाने में सक्षम थे और उन्हेंं यह भी पता था कि लॉकडाउन की कितनी अवधि उपयोगी रहती? कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल केंद्र सरकार पर यह आरोप तो मढ़ रहे हैं कि उसके पास लॉकडाउन से बाहर आने की कोई योजना नहीं, लेकिन वे यह देखने से इन्कार कर रहे हैं कि विपक्ष शासित राज्य सरकारों ने कई बार केंद्रीय सत्ता की ओर से कोई फैसला लिए जाने के पहले ही लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने का फैसला कर लिया।

घर लौटने को बेचैन कामगारों की समस्याओं को रेखांकित कर विपक्षी दलों ने अपने दायित्व का निर्वहन अवश्य किया, लेकिन उन्हेंं यह आभास होना चाहिए कि कामगारों की समस्याओं के लिए राज्य सरकारें भी बराबर की भागीदार हैं। उनकी ही उपेक्षा और अनदेखी के कारण लाखों कामगार घर-गांव लौटने के लिए व्यग्र हुए। यदि यह योजना सफल नहीं हो पाई कि जो जहां है वह वहीं रहे तो इसके लिए राज्य सरकारें भी उत्तरदायी हैं और उनमें विपक्ष शासित राज्य सरकारें शामिल भी हैं। बेहतर हो कि विपक्षी दल यह समझें कि कोरोना जैसे बड़े संकट से उपजी समस्याएं राजनीति चमकाने का अवसर नहीं हैं।