विरोध के लिए विरोध की राजनीति किस तरह बेलगाम होती जा रही है, इसका ताजा उदाहरण है विपक्ष की ओर से मतदाता पहचान पत्रों को आधार कार्ड से जोड़ने पर आपत्ति। यह अच्छा हुआ कि विपक्ष के विरोध के बाद भी इससे संबंधित संशोधन विधेयक पर संसद की मुहर लग गई, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि किस तरह वे विपक्षी दल इसके विरोध में आ खड़े हुए, जिन्होंने कुछ समय पहले यह मांग की थी कि मतदाता पहचान पत्रों को आधार कार्ड से जोड़ा जाए। बेहतर हो कि इस संशोधन विधेयक के खिलाफ खड़े हुए विपक्षी दल अगस्त, 2018 में निर्वाचन आयोग के साथ हुई अपनी उस सर्वदलीय बैठक का स्मरण करें, जिसमें उन्होंने मतदाता पहचान पत्रों में गड़बड़ी को रोकने के लिए उन्हें आधार से जोड़ने की मांग की थी और वह भी एक स्वर से।

ऐसे दलों में कांग्रेस भी थी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी। तब इन दलों की ओर से यह दलील दी गई थी कि मतदाता पहचान पत्रों को आधार से जोड़ने से न केवल मतदाता सूची में बदलाव करने में आसानी होगी, बल्कि फर्जी मतदाताओं पर भी लगाम लगाने में मदद मिलेगी। आखिर अब ऐसा क्या हो गया कि वे इसके विरोध में खड़े हो गए? विपक्षी दल इसकी अनदेखी कर रहे हैं कि फिलहाल मतदाता पहचान पत्रों को आधार से जोड़ने की प्रक्रिया ऐच्छिक है। समझना कठिन है कि इसके बाद भी वे इसके विरोध में क्यों हैं? उनकी ओर से इस तरह के जो तर्क दिए जा रहे हैं कि इससे लोगों की निजता का हनन होगा, वे कुतर्क ही अधिक हैं, क्योंकि कोई भी यह नहीं समझा पा रहा है कि ऐसा कैसे होगा? क्या जिनके पैन कार्ड अथवा राशन कार्ड आधार से जुड़े हैं, उनकी निजता का हनन हो रहा है? नि:संदेह निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों के दायरे में आता है, लेकिन किसी भी अधिकार की तरह यह भी असीम नहीं।

निजता के अधिकार की अपनी एक महत्ता है, लेकिन किसी भी अधिकार को इस हद तक नहीं खींचा जाना चाहिए कि उसकी आड़ में धांधली करने वालों पर लगाम लगाना कठिन हो जाए। एक समय था, जब मतदाता पहचान पत्रों के निर्माण का भी विरोध किया गया था। यह तो गनीमत रही कि तत्कालीन मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएन शेषन अपने निर्णय पर अडिग रहे, अन्यथा हमारे राजनीतिक दल मतदाता पहचान पत्रों का निर्माण ही नहीं होने देते। वास्तव में जैसे राजनीतिक दलों ने मतदाता पहचान पत्रों के निर्माण का विरोध किया था, वैसे ही उन्हें आधार से जोड़ने के खिलाफ खड़े हैं। ऐसे दल यही याद दिलाते हैं कि उन्होंने किस तरह हर तरह के सुधार के विरोध को अपनी आदत बना लिया है।