नोटबंदी पर रिजर्व बैैंक की बहुप्रतीक्षित रपट आने के बाद विपक्षी दलों समेत अन्य आलोचकों की ओर से सरकार को घेरना स्वाभाविक ही है। रिजर्व बैैंक के अनुसार नोटबंदी के समय देश भर में पांच सौ और एक हजार के कुल 15 लाख 41 हजार करोड़ रुपये के नोट चलन में थे, लेकिन उनमें से 15 लाख 31 हजार करोड़ रुपये के नोट बैैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए। इसका मतलब है कि करीब दस हजार करोड़ रुपये ही वापस नहीं आ सके। यह कोई बड़ी रकम नहीं। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि दावा तो यह किया गया था कि कालेधन के रूप में लगभग ढाई-तीन लाख करोड़ रुपये बैैंकों में लौटने वाले नहीं और वे रद्दी होे जाएंगे। ऐसा नहीं हुआ तो इसका एक बड़ा कारण यह रहा कि बैैंकिंग तंत्र ने कालेधन वालों से मिलीभगत कर ली।

हैरानी है कि इतना बड़ा फैसला लेने के पहले किसी ने यह क्यों नहीं सोचा कि कहीं बैैंक कर्मी सारी मेहनत पर पानी न फेर दें? आखिर इसे लेकर कोई सही आकलन क्यों नहीं किया जा सका कि लोग अपने कालेधन को सफेद बनाने के लिए क्या-क्या जतन कर सकते हैं? अच्छा होगा कि सरकार की ओर से यह स्पष्ट किया जाए कि जब दस हजार करोड़ रुपये छोड़कर सारी रकम बैैंकों में आ गई तो नोटबंदी को सफल कैसे कहा जा सकता है? चूंकि करीब इतनी ही रकम नए नोट छापने और उन्हें देश के सभी इलाकों में भेजने में खर्च हो गई इसलिए इस पर आश्चर्य नहीं कि नोटबंदी को व्यर्थ की कसरत बताया जा रहा है।

ध्यान रहे कि नोटबंदी से नकली नोटों के साथ ही आतंकी एवं नक्सली गुटों पर लगाम लगने के दावे भी बहुत पुख्ता नहीं कहे जा सकते। करदाताओं की संख्या में वृद्धि को नोटबंदी की एक सफलता के तौर पर अवश्य रेखांकित किया जा सकता है, लेकिन सभी जानते हैैं कि यह इस फैसले का मूल मकसद नहीं था। मूल मकसद तो कालेधन वालों की कमर तोड़ना था।

नोटबंदी पर विपक्ष के तीखे सवालों के बीच सरकार की ओर से एक बार फिर यह कहा गया कि बैैंकों में जमा हो गए सारे धन को सफेद नहीं कहा जा सकता और करीब 18 लाख जमाकर्ता संदिग्ध किस्म के पाए गए हैैं। ये वे लोग हैैं जिनसे यह पूछा जा रहा है कि उन्होंने बैैंक में जमा अपना पैसा कैसे अर्जित किया? सरकार की मानें तो इनमें से तमाम से टैक्स और जुर्माना वसूल किया जा रहा है। बेहतर हो कि सरकार की ओर से यह साफ किया जाए कि अब तक टैक्स और जुर्माने से कितनी राशि वसूल की जा चुकी है और सभी संदिग्ध खाताधारकों की जांच-पड़ताल कब तक पूरी हो जाएगी?

यह ठीक है कि 18 लाख लोगों से जवाब-तलब एक बड़ा काम है, लेकिन यह प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए और इसमें वैसी देर नहीं होनी चाहिए जैसी नोटबंदी पर रिजर्व बैैंक की रपट सामने आने में हुई। नोटबंदी जितना अप्रत्याशित उतना ही बड़ा फैसला था। चूंकि इस फैसले ने हर एक पर असर डाला इसलिए सरकार को हर तार्किक सवाल का संतोषजनक जवाब देना चाहिए।