मंदिरों के शहर जम्मू में सड़कों और फुटपाथों पर खुले मेनहोल को ढका न जाना लोगों के जीवन से खिलवाड़ जैसा है। इससे लगता है कि न तो नगर निगम और न ही यूईईडी विभाग की कुभंकर्णी नींद टूट रही है। उन्हें किसी बड़े हादसे का इंतजार है। बरसात के दिनों में जब सड़कें जलमग्न हो जाती हैं, तो राहगीरों के लिए यह खुले मेनहोल मौत का कारण बन सकते हैं। बरसात के मौसम में मुबंई में एक डॉक्टर की खुले मेनहोल में गिर जाने से मौत हो गई थी। प्रदेश सरकार ने इस घटना से अभी तक कोई सबक नहीं लिया है। इससे सरकार की लापरवाही सामने आ जाती है। शहर में दर्जनों मेनहोल ऐसे हैं, जिन्हें ढका नहीं गया और कहीं टूटे ढक्कन सरकारी उदासीनता की पोल खोल रहे हैं।

हद तो यह है कि खुले मेनहोल अब आसपास से निकलने वाला कचरा निस्तारण का जरिया बन चुके हैं। इस कारण इनसे उठने वाली दरुगध भी समस्या का बन चुकी है। बरसात में मेनहोल में फंसा कचरा पानी के बहाव में बाधा बनता है, जिससे सड़कों गंदगी फैलाती है। नगर निगम का मानना है कि लोहे के ढक्कन अक्सर चोरी हो जाते हैं, परंतु यह कोई सार्थक जवाब नहीं है। लोहे के ढक्कन अगर मेनहोल में लगाने हैं, तो उनमें ताले का प्रावधान किया जा सकता है। वहीं कुछ ढक्कन क्षतिग्रस्त हैं, जिनकी जगह नए लगाने की जरूरत है। ढक्कनों की खातिर लोगों की जान को यूं ही जोखिम में नहीं डाला जा सकता।

बेहतर होगा कि लोहे की जगह सीमेंट के ढक्कन लगा दिए जाएं तो चोरी की वारदातों पर भी अंकुश लगेगा। विडंबना तो यह है कि नगर निगम के पास मेनहोल की मरम्मत और उनमें ढक्कन लगाने के लिए अलग से कोई बजट नहीं है। इसका यह मतलब कि जब तक पैसे नहीं होंगे तब तक इन्हें खुला रखा जाएगा। ऐसा नहीं कि प्रशासन के पास आय के कोई साधन नहीं। हर माह निगम करोड़ों रुपये का राजस्व अर्जित करता है। सरकार को चाहिए कि वह लोगों के जीवन की कीमत को समङो और खुले मेनहोल पर ढक्कन लगाए।

[स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर]