उद्योग जगत की आवश्यकता के अनुरूप कार्यबल तैयार करने के उद्देश्य से देश के पहले कौशल विकास संस्थान की मुंबई में आधारशिला रखते हुए केंद्रीय कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्री महेंद्रनाथ पांडेय ने जानकारी दी कि ऐसे दो और संस्थान कानपुर और अहमदाबाद में खोले जाएंगे। चूंकि ये संस्थान निजी क्षेत्र की भागीदारी से खोले जाने हैैं इसलिए यह आशा की जाती है कि वे जल्द स्थापित होकर अपना काम शुरू कर देंगे। अच्छा होता कि इस तरह के संस्थान अब तक अस्तित्व में आ जाते, क्योंकि कौशल विकास की योजना जुलाई 2015 में ही शुरू कर दी गई थी। चूंकि इसे मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक माना गया था इसलिए उसके बेहतर क्रियान्वयन की उम्मीद की जा रही थी। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैैं कि ऐसा नहीं हो सका।

इस योजना के तहत बीते चार सालों में देश भर में जो तमाम कौशल विकास केंद्र खुले वे अभीष्ट की पूर्ति में कठिनाई से ही सहायक साबित हो सके। शायद यही कारण रहा कि उद्योग जगत इस तरह की शिकायत लगातार करता रहा कि उसे जैसे युवा चाहिए वैसे उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैैं। वास्तव में यह शिकायत अभी भी नहीं दूर हो सकी है। देश के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में स्थापित कल-कारखानों के बाहर इस तरह की तख्तियां सहज ही देखने को मिल जाती हैैं कि अमुक-अमुक कार्य में दक्ष कामगारों की आवश्यकता है। ये तख्तियां कौशल विकास योजना के साथ ही हमारी शिक्षा प्रणाली पर भी सवाल खड़े करती हैैं।

क्या यह समय की मांग नहीं कि हमारे शिक्षा संस्थान डिग्री धारकों की फौज तैयार करने के बजाय हुनरमंद युवाओं को तैयार करें? कम से कम अब तो यह मांग प्राथमिकता के आधार पूरी की जानी चाहिए। इस दौरान यह भी ध्यान रखा जाना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि मशीनीकरण के अलावा आधुनिक तकनीक और खासकर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के बढ़ते चलन के कारण काम की प्रकृति बदल रही है। इसी कारण परंपरागत नौकरियां तेजी से कम होती जा रही हैैं।

स्पष्ट है कि शिक्षा संस्थानों के साथ कौशल विकास संस्थानों को वैसे युवा तैयार करने पर गंभीरता से ध्यान देना होगा जो तेजी से बदलते उद्योग जगत की जरूरत को पूरा कर सकें। बेहतर हो कि मुंबई के साथ कानपुर और अहमदाबाद में कौशल विकास संस्थान की स्थापना के लिए सक्रिय सरकार इसकी भी चिंता करे कि आइटीआइ और पॉलीटेक्निक सरीखे संस्थान कौशल की बदलती हुई प्रकृति को सही तरह समझें। यह इसलिए और भी आवश्यक है, क्योंकि इतने बड़े देश में केवल तीन कौशल विकास संस्थान उद्योग जगत की जरूरतों को पूरा करने में समर्थ नहीं हो सकते।