जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान किस तरह अलग-थलग पड़ गया है, इसका प्रमाण केवल यही नहीं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई, बल्कि यह भी है कि दक्षिण एशिया का कोई देश उसका साथ देने को तैयार नहीं। भूटान, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव के बाद अब बांग्लादेश ने भी जम्मू-कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला करार दिया। इसके अलावा अमेरिका और फ्रांस ने भी नए सिरे से पाकिस्तान के समक्ष यह स्पष्ट कर दिया कि वे कश्मीर मामले में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं समझते। इस सबके बावजूद भारत में कुछ राजनीतिक दल और खासकर कांग्रेस एवं वामपंथी दल जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले पर मीन-मेख निकालने में लगे हुए हैैं।

क्या इससे अजीब और कुछ होे सकता है कि जब विश्व समुदाय जम्मू-कश्मीर पर भारत सरकार के फैसले का समर्थन कर रहा है तब कांग्रेस विरोध का राग अलाप रही है और वह भी तब जब उसके एक के बाद एक नेता इस मसले पर पार्टी की राय से असहमति जाहिर कर रहे हैैं। यह देखना दयनीय है कि कांग्रेस अभी भी यह मान रही है कि कश्मीर पर मोदी सरकार की कूटनीति विफल है। इस नतीजे पर पहुंचने के लिए उसने जिस तरह अमेरिकी राष्ट्रपति के ताजा बयान का सहारा लिया उससे यही स्पष्ट होता है कि वह जम्मू-कश्मीर मामले को समग्रता के साथ देखने के बजाय छिद्रान्वेषण पर जोर दे रही है। शायद यही कारण है कि उसके नेता अनुच्छेद 370 को अस्थाई कहने से बच रहे हैैं।

कांग्रेसी नेता न केवल इसकी अनदेखी कर रहे हैैं कि यह एक अस्थाई अनुच्छेद था, बल्कि इस बात को भी भूल जा रहे हैैं कि खुद नेहरू ने कहा था कि यह संवैधानिक व्यवस्था घिसते-घिसते एक दिन खत्म हो जाएगी।

कांग्रेस को यह स्मरण होना चाहिए कि उसके कार्यकाल में अनुच्छेद 370 में कई संशोधन किए गए। अगर यह अस्थाई अनुच्छेद इतना ही महत्वपूर्ण और उपयोगी था तो फिर कांग्रेस ने सत्ता में रहते समय उसे स्थाई रूप क्यों नहीं दिया? यह हास्यास्पद है कि कांग्रेस एक ओर तो कश्मीर को भारत का अटूट अंग बताती है और दूसरी ओर उस अनुच्छेद को हटाए जाने का विरोध भी करती है जो अलगाव और भेदभाव का जरिया बन गया था।

बेहतर हो कि कांग्रेस यह स्पष्ट करे कि उसे कश्मीर के भारत में एकीकरण को लेकर आपत्ति क्यों है? कायदे से तो यह एकीकरण आजादी के बाद ही होना चाहिए था-ठीक वैसे ही जैसे हैदराबाद और जूनागढ़ की रियासतों का हुआ था। कांग्रेस सरीखे दल के लिए यह ठीक नहीं कि वह दलगत राजनीतिक हित के आगे देश हित की अनदेखी करे।