सुप्रीम कोर्ट ने 21 विपक्षी नेताओं की इस मांग को खारिज करके बिल्कुल सही किया कि ईवीएम से वीवीपैट पर्चियों का मिलान 50 फीसदी किया जाए। कायदे से तो इस याचिका को सुना ही नहीं जाना चाहिए था, क्योंकि एक तो जब आधे से अधिक चुनाव हो चुके हों तब इस तरह की व्यवस्था संभव नहीं और दूसरे, सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को यह निर्देश पहले ही दे चुका है कि वह हर विधानसभा क्षेत्र में एक के बजाय कम से कम पांच ईवीएम का मिलान उनसे निकलने वाली पर्चियों से करे। विपक्षी नेता इसके बावजूद पुनर्विचार याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि इस पुनर्विचार याचिका का उद्देश्य यह माहौल बनाना अधिक था कि ईवीएम में गड़बड़ी की जा रही है। विपक्षी नेता ऐसा माहौल बनाने के लिए छल-छद्म के साथ फर्जी खबरों का भी सहारा ले रहे हैं। जो 21 विपक्षी नेता ईवीएम को संदिग्ध बताने में जुटे हैं उनमें अनेक वे हैं जो इसी मशीन के सहारे ही सत्ता में आए हैं। अगर पश्चिम बंगाल से लेकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विपक्षी दल सत्ता में हैं तो इसका मतलब है कि ईवीएम को संदिग्ध बताना राजनीतिक शरारत के अलावा और कुछ नहीं? विडंबना यह है कि कांग्रेस और कुछ अन्य दलों के नेता अभी भी ईवीएम के खिलाफ अपना कुप्रचार थामने को तैयार नहीं दिखते। वे ईवीएम पर्चियों का मिलान 50 फीसदी करने के लिए चुनाव आयोग पर दबाव बनाने के साथ ही अन्य दूसरे तरीकों पर विचार करने की बात कर रहे हैं। पता नहीं उनके दूसरे तरीके क्या होंगे, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं कि वे रह-रहकर मतपत्रों से चुनाव की मांग करते रहते हैं। ऐसी मांग करने वालों में वह तृणमूल कांग्रेस भी है जिसके कार्यकर्ताओं ने पंचायत चुनावों के समय मतपेटियां कुओं और तालाबों में फेंकने के साथ ही बूथ कब्जाने का काम किया था।

यह महज एक दुर्योग नहीं कि मौजूदा लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक हिंसा और धांधली की खबरें पश्चिम बंगाल से ही आ रही हैं। बेहतर होगा कि सुप्रीम कोर्ट की तरह चुनाव आयोग भी विपक्षी नेताओं की ईवीएम संबंधी शिकायत सुनने से बचे, लेकिन इसी के साथ उसे चुनावों में धांधली और हिंसा रोकने के उपायों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। नि:संदेह उसे यह भी देखना चाहिए कि जरूरत से ज्यादा लंबी चुनाव प्रक्रिया को यथासंभव छोटा कैसे किया जाए? करीब डेढ़ माह तक खिंचने वाली चुनाव प्रक्रिया जरूरत से ज्यादा लंबी है। इस लंबी चुनाव प्रक्रिया के दौरान देश ठहर सा जाता है। भारत सरीखे विकासशील देश के लिए इतनी लंबी चुनाव प्रक्रिया खर्चीली ही नहीं साबित होती, बल्कि सब कुछ ठहर जाने के कारण आर्थिक नुकसान का कारण भी बनती है। चुनाव आयोग को इसकी भी चिंता करनी होगी कि चुनाव संबंधी आचार संहिता और प्रभावी कैसे बने, क्योंकि राजनीतिक दल तो उसके अमल के प्रति बेपरवाह ही दिखते हैं। इसी के साथ उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि मतदान के समय ईवीएम में खराबी आने की समस्या दूर हो, क्योंकि इसी खराबी की आड़ में उसके खिलाफ दुष्प्रचार होता है।

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