सोनभद्र जिले की सिसवा ग्राम पंचायत में डायन खोजने की प्रक्रिया के दौरान एक ओझा ने महिला की गर्दन मरोड़ कर जान ले ली। दरअसल इस ग्राम पंचायत में पिछले दिनों एक पंचायत हुई थी, जिसमें बाहर से आए कुछ ओझाओं ने कहा था कि गांव में बाहरी दुष्ट शक्तियां हावी हो गई हैं। ऐसे में यहां के लोगों की अकाल मृत्यु हो रही है। ग्रामीणों ने ओझा के कहने पर गांव की सभी महिलाओं के बीच से डायन खोजने का निर्णय कर लिया। फिर 25 फरवरी को गांव में ही टेंट लगाया गया। वहां जुटी 60 महिलाओं में से दिन-रात डायन खोजने का क्रम शुरू हो गया। यद्यपि मृतका के पति की तहरीर पर पुलिस ने आरोपित ओझा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तलाश शुरू कर दी है, लेकिन उस पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं। पुलिस ने सब कुछ जानते हुए भी यह खेल क्यों जारी रहने दिया? यह स्थापित तथ्य है कि बिना पुलिस की मिलीभगत के इस तरह के करतब कतई जारी नहीं रह सकते।

आज के वैज्ञानिक युग में भूत, प्रेत, जादू, टोना जैसी बातें कोई अर्थ नहीं रखती हैं। वस्तुत: विज्ञान ओझाई को पूरी तरह से खारिज करता है। ऐसे में सोनभद्र की यह घटना न सिर्फ अचरज भरी है बल्कि सभ्य समाज के लिए दाग भी। चिंता की बात है कि आधुनिक एवं वैज्ञानिक युग में भी अंधविश्वास का खात्मा नहीं हो पा रहा है। अभी भी लोग डायन, भूत-प्रेत, जादू-टोना, टोटका आदि में भरोसा रखते हैं। अंधविश्वास का सबसे अधिक खमियाजा महिलाओं को ही भुगतना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं पर डायन होने का आरोप लगाकर उसे प्रताड़ित करने की घटनाएं अक्सर प्रकाश में आती रहती हैं। विभिन्न सरकारी एवं गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा अंधविश्वास के खिलाफ चलाए जाने वाले अभियानों पर भी यह घटना सवालिया निशान लगाती है। गांवों में अंधविश्वास की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि लोग चाहकर भी इससे दूर नहीं हो पा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह ऐसी घटना के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करे, जिससे फिर किसी ओझा के हाथों किसी की जान जाने की घटना सुनाई न दे।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]