बिहार की छवि कब और कैसे खराब हुई, यह विवाद पीछे छोड़कर राज्य सुधार और प्रगति के पथ पर चल पड़ा है। करीब डेढ़ साल पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्ण शराबबंदी लागू की, तब पूरा देश चौंक पड़ा था। सब लोग इसके निहितार्थ तलाशने में लगे थे। अन्य राज्यों में शराबबंदी के विफल प्रयोगों के अनुभव से भविष्यवाणी की जा रही थी कि पूर्ण शराबबंदी सफल नहीं होगी। चौक-चौराहों से लेकर न्यायालयों तक इस फैसले की मंशा पर सवाल उठ रहे थे। वक्त ने हर सवाल का जवाब दे दिया। आपराधिक तौर पर शराब के कारोबार और सेवन की घटनाएं अब भी सामने आ रहीं, पर राज्य के लोगों ने जिस संकल्प और ईमानदारी के साथ पूर्ण शराबबंदी को अपनाया, उसकी नजीर मिलना कठिन है। शायद शराबबंदी के उत्साहवर्धक अनुभव ने ही मुख्यमंत्री को बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ मुहिम छेडऩे का हौसला दिया। गांधी जयंती के दिन बिहार सरकार यह मुहिम शुरू करके राष्ट्रपिता को अनूठी श्रद्धांजलि देगी। संयोग है कि यह चंपारण सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष है जिसे पिछले कई महीनों से श्रद्धापूर्वक मनाया जा रहा है। गांधी जयंती पर पूरा देश बापू का स्मरण करेगा, उनके पदचिन्हों पर चलने का संकल्प दोहराएगा लेकिन बिहार की धरती पर बापू के सपने साकार होते दिखेंगे। यही उस महामानव के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। बदनामी के अंधेरे से उबरकर अपना स्वर्णिम अतीत वापस लाने वाले बिहार का इतिहास मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को हमेशा सम्मान देगा जिन्होंने हर तरह के राजनीतिक झंझावातों के बीच बिहार में सामाजिक सुधारों का अभियान थमने नहीं दिया। यह नीतीश कुमार ही थे जिन्होंने वर्ष 2005 में 'जंगलराज' वाले बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी। उस वक्त भी देखते ही देखते राज्य न सिर्फ सुधार के पथ पर लौटा था बल्कि देश में सर्वाधिक तेजी से बदलते और विकसित होते राज्य का तमगा भी हासिल किया था। वही राज्य अब सामाजिक सुधारों की नई इबारत लिख रहा है। अपेक्षा की जानी चाहिए कि राज्य के सभी राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और बौद्धिक वर्ग इस अभियान में कंधे जोड़े दिखेंगे। राज्य में महिलाओं को डायन बताकर अपमानित और प्रताडि़त करने की शर्मनाक प्रथा जारी है। मुख्यमंत्री से अपेक्षा है कि इस कलंक को भी मिटाने की कोशिश की जाए।
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पूर्ण शराबबंदी के बाद बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ अभियान बदलते बिहार के संकेत हैं। संयोग है कि ये तीनों अभियान महिलाओं से संबंधित हैं और उनके आग्रह पर ही शुरू किए गए। उम्मीद है कि इस क्रम में अगला अभियान डायन प्रथा के खिलाफ चलेगा।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]