राहुल गांधी के करीबी और उनके सलाहकार सैम पित्रोदा ने बालाकोट हमले पर बेतुका बयान देकर अपने साथ-साथ कांग्रेस की फजीहत कराने के अलावा और कुछ नहीं किया। उन्हें इसका अहसास होना चाहिए कि उनका बयान पाकिस्तान के मन मुताबिक ही है। हैरत नहीं कि वह उनके बयान को अपने पक्ष में इस्तेमाल भी करे। सैम पित्रोदा को बालाकोट में भारतीय वायुसेना की एयर स्ट्राइक को लेकर इस कदर संदेह है कि वह वहां आतंकियों के मारे जाने के सुबूत भी चाह रहे हैं।

साफ है कि वह उन बातों पर यकीन करने को तैयार नहीं जिनकी ओर केंद्रीय गृहमंत्री ने संकेत किया था। वह शायद इसकी भी अनदेखी कर रहे हैं कि पाकिस्तान किस तरह विदेशी संवाददाताओं को हमले की जगह नहीं ले गया और जिन्होंने जाने की कोशिश की उनका रास्ता रोका। सैम पित्रोदा इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि वायुसेना प्रमुख यह कह चुके हैं कि उनका काम लक्ष्य भेदना था, न कि लाशें गिनना।

क्या वह इससे परिचित नहीं कि पाकिस्तान ने किस तरह सर्जिकल स्ट्राइक से भी इन्कार किया था? क्या वह मोदी सरकार पर निशाना साधने के फेर में वायुसेना की क्षमता पर सवाल उठाने के साथ-साथ उस पर शक भी नहीं कर रहे हैं? इंडियन ओवरसीज कांग्रेस का अध्यक्ष होने के नाते उन्हें इतना पता होना ही चाहिए कि मुद्दा यह नहीं है कि बालाकोट में कितने आतंकी मरे, बल्कि यह है कि भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर मार की और उसे यह सीधा संदेश दिया कि भारत उसकी करतूतों पर मौन नहीं रह सकता।

कायदे से तो पाकिस्तान को ऐसा कोई संदेश मुंबई हमले के बाद ही दिया जाना चाहिए था। शायद कांग्रेस को इससे परेशानी है कि नरेंद्र मोदी ने कहीं अधिक राजनीतिक साहस का परिचय दिया। सच्चाई जो भी हो, राजनीतिक हित साधने के फेर में पाकिस्तान के मन माफिक बयान देने का कोई मतलब नहीं। मुश्किल यह है कि ऐसे बयान देने वाले सैम पित्रोदा अकेले नेता नहीं। बीते दिनों सपा नेता रामगोपाल यादव भी पुलवामा कांड को लेकर यह कह गए कि वोट के लिए जवान मरवा दिए गए।

कुछ ऐसी ही बात अरविंद केजरीवाल भी कह चुके हैं। इससे तो यही लगता है कि बिना सोचे-समझे बयान दागने की बीमारी बढ़ती जा रही है। सैम पित्रोदा का मामला इसलिए कहीं गंभीर है, क्योंकि उन्होंने केवल एयर स्ट्राइक पर ही संदेह नहीं जताया, बल्कि मुंबई हमले को लेकर यह भी कहा कि आठ लोग आए और कुछ कर गए तो इसके लिए पाकिस्तान को दोष नहीं दिया जा सकता।

इसका मतलब तो यही निकलता है कि वह मुंबई हमले में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी की मिलीभगत की अनदेखी करने के साथ ही इससे भी अनजान बने रहना चाह रहे हैं कि पाकिस्तान में मुंबई के गुनहगार किस तरह खुले आम घूम रहे हैं। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि कांग्रेस ने उनके बयान से किनारा कर लिया और खुद उन्होंने बाद में लीपापोती की, क्योंकि जो नुकसान होना था वह हो चुका। सैम पित्रोदा को पता होना चाहिए कि वह कांग्रेस को शर्मिंदा करने के साथ हीराष्ट्रीय हितों पर भी चोट कर गए।