त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के लिए अपना घोषणापत्र जारी करते हुए कांग्रेस ने अन्य लोक लुभावन वादे करते हुए जिस तरह पुरानी पेंशन योजना लागू करने का भी वादा किया, उससे यह स्पष्ट है कि वह इसी मुद्दे पर चुनाव जीतने का सपना देख रही है। पता नहीं उसका यह सपना पूरा हो पाएगा या नहीं, लेकिन यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि वह इस नतीजे पर पहुंच गई है कि हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन योजना का वादा उसकी जीत में सहायक बना। चूंकि कांग्रेस शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी पुरानी पेंशन योजना लागू करने का वादा कर दिया गया है, इसलिए हैरानी नहीं कि अन्य राज्यों में भी कांग्रेस पुरानी पेंशन योजना की वापसी के वादे के साथ चुनाव लड़े।

कांग्रेस की तरह अन्य विपक्षी दल भी पुरानी पेंशन योजना को अपनाते दिख रहे हैं। इनमें आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी प्रमुख हैं। हालांकि रिजर्व बैंक के साथ अनेक अर्थशास्त्रियों और यहां तक कि कांग्रेस के समय योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया यह कह चुके हैं कि पुरानी पेंशन योजना लागू करने का फैसला बेतुका है और यह वित्तीय दिवालिएपन का कारण बनेगा, लेकिन अन्य दलों की कौन कहे, स्वयं कांग्रेस भी उन्हें सुनने को तैयार नहीं है।

जब यह स्पष्ट है कि पुरानी पेंशन योजना वित्तीय आपदा का कारण बनेगी, तब यह समझना कठिन है कि कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दल उसकी वकालत क्यों रहे हैं? वित्तीय नियमों की ऐसी खुली अनदेखी आत्मघात के अलावा और कुछ नहीं। राजनीतिक दल इससे अपरिचित नहीं हो सकते कि वित्तीय नियमों की अनदेखी करना अर्थव्यवस्था के साथ भावी पीढ़ी को अंधकार में धकेलना है, लेकिन वे संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों को पूरा करने के लिए जानबूझकर जोखिम मोल ले रहे हैं। विडंबना यह है कि यह काम केंद्र सरकार की ओर से यह स्पष्ट किए जाने के बाद भी किया जा रहा है कि वह पुरानी पेंशन योजना लागू करने वाले राज्यों को वित्तीय सहयोग देने में सक्षम नहीं होगी और उन्हें उससे ऐसी कोई अपेक्षा भी नहीं रखनी चाहिए।

इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जिन राज्यों ने पुरानी पेंशन योजना वापस लाने की घोषणा कर दी है, उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि उसे जमीन पर उतारने के लिए आगे कैसे बढ़ें? इस कठिनाई के बाद भी आशंका यही है कि आने वाले दिनों में अन्य राज्य सरकारें वोट बैंक बनाने या फिर चुनाव जीतने के लिए पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की घोषणा कर सकती हैं। इसे देखते हुए केंद्र सरकार को इस पर विचार करना चाहिए कि नई पेंशन योजना को आकर्षक कैसे बनाया जाए? निःसंदेह पुरानी पेंशन योजना वित्तीय रूप से सरकारी खजाने पर बोझ है, लेकिन यह भी सही है कि नई पेंशन योजना को उपयोगी बनाने की आवश्यकता है।