हरियाणा की पूर्व कांग्रेस सरकार में हुए करीब 1600 करोड़ के मानेसर जमीन घोटाले में सीबीआइ द्वारा मुख्य सचिव सहित कई आइएएस अधिकारियों को सरकारी गवाह बनाए जाने पर अपने विद्रोही स्वभाव के लिए चर्चित वरिष्ठ आइएएस अशोक खेमका ने विरोध जताया है। हो सकता है कि खेमका ने अन्य अधिकारियों को अपना प्रतिद्वंद्वी मानते हुए ईष्र्यावश ऐसा किया हो, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि जिन आइएएस को गवाह बनाया गया है, वे यह जानते थे कि तत्कालीन शासन गलत कर रहा है। आखिर इसी बात की गवाही तो ये अधिकारी अदालत में देंगे कि जो कुछ हुआ था, वह विधि विरुद्ध था। सीबीआइ ने उन्हें गवाहों की सूची में शामिल किया है तो यह भी स्पष्ट है कि उन्होंने सीबीआइ जांच के दौरान इस आशय के बयान दिए होंगे। हालांकि जांच अधिकारी के समक्ष दिए गए बयान तब तक अर्थहीन होते हैं, जब तक अदालत में गवाह जांच अधिकारी के सामने अपने बयान की पुष्टि न हो।

इसलिए इन अधिकारियों के अदालत में दिए बयान पर निगाहें रहेंगी। जब तक अदालत का फैसला नहीं आ जाता यह भी नहीं कहा जा सकता कि कुछ गलत हुआ ही था। संभव है कि ये अधिकारी खुद भी फंस रहे हों, इसलिए सरकारी गवाह बनकर बच निकलने में उन्होंने भलाई समझी। अशोक खेमका इसी तरफ इशारा कर रहे हैं। इस प्रकरण से यह तो स्पष्ट ही है कि आइएएस निजी हितों में सत्तारूढ़ नेताओं के विधि विरुद्ध आदेशों का क्रियान्वयन करने से नहीं हिचकते और ऐसा हर सरकार में होता है। इस पर पूर्ण विराम तभी लगेगा, जब अधिकारी स्वयं को देश और समाज के प्रति जिम्मेदार मानेंगे और किसी भी काम को करने से पहले अपने अंतरमन में झांक लेंगे।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]