फर्रुखाबाद, बस्ती, मेरठ, बाराबंकी, देवरिया, मऊ, वाराणसी और उन्नाव आदि कितनी ही जेलों में मचे बवाल के बाद इस बार बारी गोरखपुर की थी। इस जेल में पहले भी कैदियों के बीच उपद्रव हो चुके हैं। जेलर, डिप्टी जेलर तक पर वहां हमले हुए। उन घटनाओं से सबक लिया गया होता तो गुरुवार को गोरखपुर में हुई घटना से बचा जा सकता था। जेलों में उपद्रव तो अब जैसे रोज की बात हो रही है। वाराणसी में डिप्टी जेलर अनिल त्यागी की हत्या तक हो गई। ये घटनाएं यह बताने को पर्याप्त हैं कि उत्तर प्रदेश की जेलों के अंदर कुछ भी ठीक नहीं। इस समय सूबे की जेलों में 90 हजार से ज्यादा बंदी हैं जबकि क्षमता सिर्फ 50 हजार की है। ऐसे में दोगुने के लगभग बंदी और भीतर की बेमेल व्यवस्था बवाल की बड़ी वजह बन रहे हैं। ऊपर से राज्य सरकार बंदीरक्षकों की नियुक्ति भी नहीं कर रही। बंदीरक्षक रिटायर तो हो रहे हैं लेकिन उनकी जगह नए लोग नहीं रखे जा रहे। जेलों में प्रशासन की मनमानी भी इस कदर है कि बंदी बहुत आक्रोश में हैं। मुलाकात कराने से लेकर खानपान तक की व्यवस्था में गलत प्रवृत्तियों ने बंदियों की नाराजगी को और बढ़ा दिया है। एक तरफ तो माफिया और प्रभावशाली लोगों को जेल में सभी सुविधाएं दे दी जाती हैं जबकि दूसरी तरफ आम बंदियों का उत्पीड़न होता है।हाल की ही एक घटना गौतमबुद्ध नगर जेल की है जहां बिसाहड़ा कांड के एक आरोपी रवि को वहां के जेलर ने कथित रूप से इतनी बुरी तरह प्रताडि़त किया कि उसकी तबीयत बिगड़ गयी और फिर वह रहा भी नहीं। रवि की मौत के बाद सारा आक्रोश जेलर के खिलाफ निकला। शासन ने जेलर को जेल मुख्यालय से संबद्ध कर जांच शुरू की है। यह वही जेलर हैं जिनके समय में लखनऊ में एनआरएचएम घोटाले के आरोपी डिप्टी सीएमओ डॉ वाइएस सचान की मौत हुई थी। जेलों में बड़ी संख्या ऐसे अधिकारियों की है जो अपराधियों, बाहुबलियों और माफिया की दुरभिसंधि में शामिल हैं। वे आम बंदी का उत्पीड़न करते हैं और बाहुबलियों को सेवाएं उपलब्ध कराते हैं। मथुरा जेल के दो गुटों में एक गुट के साथ खड़े जेल प्रशासन ने जिस तरह की साजिश की, वह छिपा नहीं है। जेल से ही एक बंदी गैंगस्टर की हत्या की साजिश रची गयी। सरकार यदि जेलों में शांति चाहती है तो उसे जेलों का प्रशासन ठीक करना होगा। इसके लिए कड़े उपाय भी करने होंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]