कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देश पर राज्य चुनाव आयोग ने सोमवार को एक दिन के लिए नामांकन पत्र जमा लेने की प्रक्रिया शुरू की। सुबह 11 बजे से लेकर अपराह्न तीन बजे तक नामांकन दाखिल करने का समय था, लेकिन शुरुआत ही गड़बड़ी और हिंसा से हुई। मुर्शिदाबाद और पश्चिम मेदिनीपुर से लेकर वीरभूम तक विभिन्न जिलों में नामांकन के दौरान हिंसा की घटनाएं घटी। इस दौरान जगह-जगह सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी समर्थकों के बीच हिंसक संघर्ष हुए। अधिकांश जगहों पर तृणमूल समर्थकों पर विपक्षी दलों के नेताओं पर हमला करने का आरोप लगा है। कई जगहों पर विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल नहीं करने देने की शिकायतें मिली है। नामांकन के दौरान सबसे अधिक भयावह स्थिति वीरभूम के सिउड़ी में देखने को मिली जहां संघर्ष के दौरान गोली लगने से एक युवक की मौत हो गई। तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया है युवक उसकी पार्टी का कर्मी था। संघर्ष में विभिन्न दलों के दर्जनों कर्मी घायल हुए हैं।

सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों ने हिंसा फैलाने के लिए एक दूसरे पर आरोप लगाया है। कहने की जरूरत नहीं कि पंचायत चुनाव के लिए नामांकन करने को लेकर राज्य के विभिन्न जिलों में फिर से हिंसा का दौर शुरू हो गया है। चुनाव आयोग की अधिसूचना के अनुसार सोमवार को हिंसा के बीच दाखिल किए गए नामांकन पत्रों की जांच 25 अप्रैल को होगी। वापस लेने की अंतिम तारीख 28 अप्रैल निर्धारित की गई है। लेकिन सवाल यह है कि नामांकन के दौरान राज्य चुनाव आयोग जिस तरह हिंसा रोकने में असमर्थ हुआ उससे विपक्षी दलों को एक बार फिर कोर्ट में जाने का मौका मिल गया है। अब वे कोर्ट में जाएंगे कि नहीं यह अलग बात है। लेकिन पंचायत चुनाव जिस तरह कानूनी पचड़े में पड़ गया है उससे नहीं लगता है कि राज्य चुनाव आयोग मामला-मुकदमा की समस्या से उबर पाएगा। विपक्षी दलों ने जब रविवार को ही राज्य चुनाव आयुक्त से मिलकर नामांकन के दौरान हिंसा की आशंका जताई और पूर्ण सुरक्षा की मांग की। आखिर शांतिपूर्ण चुनाव कराने की जिम्मेदारी तो राज्य चुनाव आयोग की ही है। चुनाव में पूर्ण सुरक्षा की व्यवस्था कैसे होगी यह चुनाव आयोग को ही तय करना होगा। राज्य पुलिस से नहीं संभल रही है तो आयोग केंद्रीय बल की मांग कर ही सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल ]