बिहार (Bihar) में एक बार फिर महागठबंधन (Mahagathbandhan) की सरकार बन गई। नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने रिकार्ड आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और राजद नेता तेजस्वी यादव (Tejaswi Yadav) ने दूसरी बार उपमुख्यमंत्री पद की। फिलहाल यह साफ नहीं कि तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री के रूप में कौन से मंत्रालय संभालेंगे, लेकिन यदि गृह मंत्रालय उनके पास आता है, तो इससे यही स्पष्ट होगा कि पिछली बार के बजाय इस बार वह कहीं अधिक ताकतवर उपमुख्यमंत्री होंगे। इससे नीतीश कुमार की चुनौती बढ़ सकती है, क्योंकि राजद के समय कानून एवं व्यवस्था को लेकर कैसे सवाल उठते रहे हैं, इससे उनसे बेहतर और कोई अवगत नहीं हो सकता।

इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि नीतीश कुमार जब महागठबंधन से बाहर आए थे, तो उन्होंने राजद नेताओं के भ्रष्टाचार के साथ कानून एवं व्यवस्था में उनके हस्तक्षेप को भी रेखांकित किया था।

नीतीश कुमार की नई सरकार ने भले ही बिहार की जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने का भरोसा दिलाया हो, लेकिन तथ्य यह है कि राज्य विकास के तमाम पैमानों पर पिछड़ता जा रहा है। नीतीश कुमार के लंबे शासनकाल के बाद भी बिहार में उद्योग-धंधों का विकास नहीं हो सका है। उनके लिए सुशासन के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाना और राजद के चुनावी वादों को समायोजित करना कठिन हो सकता है। इसलिए और भी, क्योंकि तेजस्वी यादव ने दस लाख सरकारी नौकरियां देने के अपने वादे को निभाने की घोषणा कर दी है।

चूंकि महागठबंधन की पिछली सरकार के मुकाबले इस बार नीतीश कुमार के पास कहीं कम संख्याबल है, इसलिए भी उनके सामने चुनौतियां होंगी। नीतीश कुमार का व्यक्तित्व कुछ ऐसा है कि वह किसी तरह के राजनीतिक दबाव और हस्तक्षेप के आगे सहज नहीं रह पाते, इसलिए भी उनके सामने मुश्किलें आ सकती हैं। उनके भाजपा से नाता तोड़ने का एक कारण भी यही दिखता है कि वह उसके दबाव के आगे खुद को असहज पा रहे थे।

जो भी हो, अब उन्हें राजद के साथ महागठबंधन के अन्य घटक दलों की अपेक्षाओं को भी पूरा करना होगा और यह किसी से छिपा नहीं कि अपेक्षाएं दबाव के रूप में ही सामने आती हैं। जैसे नीतीश कुमार के सामने चुनौतियां दिख रही हैं, वैसे ही तेजस्वी यादव के समक्ष भी। नि:संदेह वह पहले के मुकाबले राजनीतिक रूप से परिपक्व दिख रहे हैं, लेकिन उनके सामने अपने समर्थकों और साथ ही पार्टी की छवि बदलने की चुनौती तो है ही। यह सही है कि लालू यादव राजनीतिक रूप से पहले की तरह सक्रिय नहीं और शायद स्वास्थ्यगत कारणों से होंगे भी नहीं, लेकिन राजद को उनके जमाने की छवि से बाहर निकालने की जरूरत तो है ही।