मुख्यमंत्री नीतीश कुमार साधनहीन मेधावियों की उच्च शिक्षा संबंधी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति को जिस तरह सहारा दे रहे हैं, उसकी सराहना राजनीतिक हद से बाहर निकलकर की जानी चाहिए। मुख्यमंत्री कई बार सार्वजनिक मंचों पर अपनी आकांक्षा व्यक्त कर चुके हैं कि वह बिहार को उसके स्वर्णिम अतीत में वापस लाना चाहते हैं। इसे देखते हुए सूबे की शिक्षा व्यवस्था, खासकर मेधावी छात्र-छात्रओं की फिक्र हर दृष्टि से उचित है। मुख्यमंत्री ने स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड के जरिए शिक्षा ऋण प्राप्त करने वाले छात्र-छात्रओं को सहूलियत दी है कि वे इसकी अदायगी साढ़े सात साल में कर सकेंगे। यह बड़ी सहूलियत है जिसके परिणामस्वरूप स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड के प्रति छात्र-छात्राओं का आकर्षण बढ़ना तय है। इस योजना के तहत विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए अधिकतम चार लाख रुपये ऋण प्राप्त कर सकते हैं। खास बात यह है कि यह ऋण प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों को किसी भी तरह की गारंटी नहीं देनी पड़ेगी बल्कि सरकार खुद उनकी गारंटी लेगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हाल में संकेत दे चुके हैं कि जो विद्यार्थी किसी परिस्थितिवश ऋण चुकाने में असमर्थ होंगे, सरकार उनका ऋण माफ करने पर भी विचार करेगी। स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड देश में अपने ढंग की अलग योजना है। पहले इसे बैंकों के माध्यम से शुरू किया गया था, पर बैंकों के असहयोग के चलते योजना अपेक्षानुसार परवान नहीं चढ़ी। समीक्षा में बैंकों की नकारात्मक भूमिका सामने आने के बाद मुख्यमंत्री ने योजना का स्वरूप बदल दिया। अब सरकार खुद ऋण देगी। उम्मीद की जा रही है कि नए स्वरूप में यह योजना विद्यार्थियों के बीच अपेक्षित लोकप्रियता हासिल कर सकेगी। बिहार में ऐसे मेधावियों की बहुतायत है जो अपने परिवार की कमजोर माली हालत के कारण उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। ऐसे विद्यार्थियों के लिए यह योजना वरदान मानी जा रही है। शासन की जिम्मेदारी बनती है कि इस योजना का प्रचार-प्रसार अभियान चलाकर सुदूर ग्रामीण अंचलों तक करे ताकि इसका लाभ वास्तविक जरूरतमंदों को मिल सके। इस योजना को लोकप्रिय बनाने के लिए आवश्यक है कि इसकी प्रक्रिया सरल बनाई जाए ताकि विद्यार्थी इधर-उधर भटके बगैर इसका लाभ उठा सकें।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]