पहाड़ में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) के बंद, प्रदर्शन और आंदोलन पर अंकुश लगाने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अहम कदम उठाया है। उन्होंने गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के स्थान पर नौ सदस्यीय बोर्ड ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर (बीओए) गठित कर दिया है। बोर्ड के चेयरमैन गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) से निष्कासित विनय तामांग को बनाया गया है। एक और निष्कासित नेता अनित थापा को उपचेयरमैन नियुक्त किया गया है। जीटीए की जगह पर अब यह बोर्ड पहाड़ पर विकास कार्य करेगा। गोजमुमो प्रमुख विमल गुरुंग समेत अन्य सदस्यों ने पहले ही जीटीए से इस्तीफा दे दिया है। इसलिए जीटीए एक तरह से भंग हो गया है। चुनाव के बाद अगर जीटीए का गठन होता है तभी वह फिर अस्तित्व में आएगा। मुख्यमंत्री का कहना है कि सरकार ने जीटीए से इस्तीफा देने के लिए किसी पर दबाव नहीं डाला था। जीटीए की धारा 65 के मुताबिक गठित बीओए में प्रधान सचिव को भी शामिल किया गया है।

पहाड़ में स्थिति सामान्य करने के लिए भले ही यह मुख्यमंत्री का एक प्रशासनिक कदम है लेकिन इसकी राजनीतिक अहमियत ज्यादा है। विनय तामांग और अनित थापा को गुरुंग से बगावत करने का लाभ मिला है। दोनों नेताओं ने पहाड़ में शांति और सामान्य स्थिति लाने के लिए सरकार के साथ समन्वय किया था। दोनों ने पहाड़ में बंद जारी रखने के गुरुंग के फैसले का विरोध किया था। मुख्यमंत्री ने गोजमुमो से निष्कासित इन दोनों नेताओं पर भरोसा किया और उन्हें अलग बोर्ड गठित कर अहम जिम्मेदारी सौंप दी। तामांग और थापा पहाड़ में गुरुंग के विरुद्ध जनमत तैयार करने में सफल हो जाते हैं तो गोजमुमो का प्रभाव खत्म हो जाएगा। इस तरह गुरुंग पहाड़ में अलग-थलग पड़ जाएंगे और तामांग व थापा के पहाड़ में नये नेता के रूप में उभरने की संभावना बढ़ गई है। गुरुंग के कमजोर पड़ने पर हो सकता है कि सरकार दोनों नेताओं को पहाड़ का नेता मानकर उनके साथ कोई औपचारिक समझौता कर ले। गुरुंग ने जीटीए का चुनाव बहिष्कार करने की घोषणा की है। लेकिन आगे चल कर गोजमुमो से निष्कासित तामांग व थापा जीटीए के चुनाव कराने में भी अहम जिम्मेदारी निभा सकते हैं। गुरुंग को दबाव में रखने के लिए मुख्यमंत्री का यह प्रशासनिक कदम कुछ हद तक कारगर साबित होगा। अब देखना है कि गुरुंग सरकार के इस फैसले के विरुद्ध क्या कदम उठाते हैं।

[ स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल ]