विदेश यात्रा से लौटे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह कह कर विपक्ष को आईना दिखाने के साथ नसीहत देने की भी कोशिश की है कि आस्ट्रेलिया में उनके कार्यक्रम में सत्तापक्ष के साथ विपक्ष भी उपस्थित था। उन्होंने यह कोशिश इसलिए की, क्योंकि करीब 20 विपक्षी दल नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने पर तुले हुए हैं। इसके पीछे उनका तर्क है कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को करना चाहिए।

नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला कर विपक्ष ने अपने इस तर्क को कुतर्क में बदलने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी के प्रति अपने अंधविरोध को सामने लाने का ही काम किया है। वह वास्तव में क्षुद्रता पर उतर आया है। नए संसद भवन का प्रधानमंत्री के हाथों उद्घाटन न होने की जिद कर रहे विपक्षी दलों में से अनेक वे हैं, जिन्होंने राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी के रूप में द्रौपदी मुर्मु का विरोध किया था। कुछ विपक्षी नेताओं ने तो उनके प्रति अपशब्दों का भी प्रयोग किया था। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इन दिनों राष्ट्रपति के मान-सम्मान की चिंता में दुबले होने का दिखावा कर रहे दलों में से कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने बजट सत्र में उनके अभिभाषण का बहिष्कार किया था। क्या यह राष्ट्रपति के साथ लोकतंत्रिक मूल्यों का अपमान नहीं था?

इसमें संदेह नहीं कि विपक्षी दल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के बहाने प्रधानमंत्री मोदी पर क्षुद्र राजनीतिक हमला कर रहे हैं। ऐसा करके वे अपनी जगहंसाई ही करा रहे हैं, क्योंकि यह कोई मुद्दा नहीं हो सकता कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति को ही करना चाहिए। एक तो ऐसा कोई नियम नहीं है और दूसरे, अतीत में प्रधानमंत्रियों ने संसद से जुड़े भवनों का उद्घाटन या शिलान्यास किया है। आखिर तब उन्हें राष्ट्रपति की याद क्यों नहीं आई? यह भी ध्यान रहे कि सोनिया गांधी महज सांसद के तौर पर छत्तीसगढ़ विधानसभा के नए भवन का शिलान्यास कर चुकी हैं। इसी तरह मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के रूप में तमिलनाडु के नए विधानसभा परिसर का उद्घाटन कर चुके हैं?

जब ऐसी कोई पंरपरा ही नहीं कि विधायी परिसरों का उद्घाटन राष्ट्रपति को ही करना चाहिए, तब नए संसद भवन के मामले में यह जिद पकड़ने का क्या तुक? क्या विपक्ष यह वचन देने को तैयार है कि भविष्य में राष्ट्रीय महत्व के भवनों और परिसरों का शिलान्यास या उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों ही होगा? यदि नहीं तो फिर इस नतीजे पर क्यों न पहुंचा जाए कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को आगे कर वह घड़ियाली आंसू बहा रहा है? यह वही विपक्ष है, जिसने नए संसद भवन का निर्माण रोकने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था और यह दुष्प्रचार करने में भी संकोच नहीं किया था कि नए संसद भवन के रूप में मोदी का महल बन रहा है।