-----कोई भी सड़क दोतरफा विकास का जरिया बनती है, लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि जो भी सड़क बने उसकी गुणवत्ता बेहतर हो। -----उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने अगले वर्ष से प्रतिदिन 35 किलोमीटर सड़क बनाने का लक्ष्य रखा है। अभी यह लक्ष्य 25 किलोमीटर का है। इसके साथ ही दो दिन में एक पुल बनाने का आश्वासन दिया है। उन्होंने 109 सड़कों को राष्ट्रीय मार्ग घोषित करने का प्रस्ताव सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को भेजे जाने की बात कही है। इनमें 6260 किलोमीटर लंबाई वाले 73 मार्गो को राष्ट्रीय मार्ग बनाने की सहमति मिलने की बात है। यह घोषणाएं बहुत उम्मीद जगाने वाली हैं। यदि ये सभी लक्ष्य समय से पूरे होते हैं तो प्रदेश के विकास की तरक्की का मार्ग और भी तेजी के साथ प्रशस्त होगा। अच्छी सड़क हमेशा विकास में मदद करती है। जिन इलाकों में सड़कों का जाल पहले बिछ चुका है वे इलाके औरों के मुकाबले विकास पथ पर बहुत आगे निकल चुके हैं। सड़कें हमेशा कारोबार को तरक्की देती हैं। किसान की उपज शहरों तक आसानी से पहुंचती है तो किसानों के ग्रामीणों व किसानों के इस्तेमाल की चीजें आसानी से उन तक पहुंचती हैं। इन्हीं सड़कों से गांव-जवार के नौजवान आंखों में नए नए सपने लेकर शहरों की ओर रुख करते हैं। इन सड़कों के किनारे खुलने वाले प्रतिष्ठान, दुकानें, दफ्तर, रेस्टोरेंट, ढाबे लोगों को रोजगार मुहैया कराते हैं। कोई भी सड़क दोतरफा विकास का जरिया बनती है लेकिन, ध्यान देने वाली बात है कि जो भी सड़क बने उसकी गुणवत्ता बेहतर हो। अक्सर कमीशनखोरी के चक्कर में नई बनी सड़कें सहूलियत देने के बजाय कष्ट देने का सबब बनती हैं। इसके लिए सरकार को सड़क निर्माण की प्रक्रिया में लक्ष्य निर्धारण के साथ ही गुणवत्ता के मानकों का सख्ती से अनुपालन कराने पर भी ध्यान देना होगा। सड़क बनाने में लगने वाली सामग्री के साथ ही निर्माण करने वाली एजेंसी की प्रतिष्ठा भी अविवादित होनी चाहिए। ऐसा न हो कि कुछ खास चहेते ठेकेदारों और कंपनियों को ही काम पर लगाया जाये और योग्य लोगों को दरकिनार कर दिया जाये जैसा कि पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल में होता रहा है। इसके साथ ही सरकार को यह भी ध्यान देना होगा कि उसकी इस मुहिम से प्रदेश का कोई कोना अछूता न रहे। ऐसा न हो कि सड़क निर्माण में बड़े नेताओं के तथाकथित वीआइपी क्षेत्रों को ही तरजीह दी जाये।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]