कांग्रेस संचालन परिषद की बैठक में यह जो फैसला हुआ कि भारत जोड़ो यात्रा समाप्त होने के बाद पार्टी हाथ से हाथ जोड़ो अभियान शुरू करेगी, उससे यही पता चलता है कि कांग्रेस नेतृत्व अगले आम चुनाव की तैयारियों में जुट गया है। इसमें हर्ज नहीं। राजनीतिक दलों को इस तरह की कोशिश करनी ही चाहिए। हाथ से हाथ जोड़ो अभियान का उद्देश्य बूथ, ब्लाक, पंचायत स्तर पर लोगों से संपर्क साधना है। इस तरह के अभियान जनता को कांग्रेस से जोड़ने का काम कर सकते हैं, लेकिन तभी जब उसके पास ऐसा कोई एजेंडा हो, जो लोगों को उसकी ओर आकर्षित कर सके।

समस्या यह है कि कांग्रेस आम जनता के समक्ष कोई वैकल्पिक एजेंडा पेश नहीं कर पा रही है। वह यह काम भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी नहीं कर पाई। इस यात्रा के दौरान राहुल गांधी वही पुरानी बातें दोहराते रहे, जो वह एक लंबे समय से करते चले आ रहे हैं। भले ही भारत जोड़ो यात्रा का उद्देश्य देश को जोड़ना बताया जा रहा हो, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं कि ऐसी यात्राओं का मूल मकसद राजनीतिक जमीन मजबूत करना होता है।

किसी दल की राजनीतिक जमीन मजबूत हो रही है या नहीं, इसका पता चुनावों से चलता है। यदि हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव नतीजे कांग्रेस के अनुकूल नहीं रहे तो इसका असर भारत जोड़ो यात्रा और साथ ही राहुल गांधी पर भी पड़ेगा।

भारत जोड़ो यात्रा फिलहाल मध्य प्रदेश में है। इसके बाद वह राजस्थान में प्रवेश करेगी। वहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच की तनातनी कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान यह तनातनी चरम पर आ जाए तो हैरानी नहीं। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इसी यात्रा के दौरान केरल कांग्रेस में आपसी खींचतान देखने को मिली और उसके पहले जम्मू-कश्मीर में पार्टी दोफाड़ हो गई। इसके अलावा तेलंगाना उपचुनाव में कांग्रेस ने अपनी विधानसभा सीट खो दी। कांग्रेस को इसकी तह तक जाना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ?

चूंकि ऐसे सवालों का जवाब नहीं मिल रहा है इसीलिए बार-बार यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस को भारत से पहले पार्टी को जोड़ने की आवश्यकता है। कांग्रेस में आपसी गुटबाजी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। यह जो उम्मीद की जा रही थी कि मल्लिकार्जुन खरगे के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी में गुटबाजी पर लगाम लगेगी, वह पूरी होती नहीं दिख रही है। इसका उदाहरण राजस्थान कांग्रेस है। भले ही मल्लिकार्जुन खरगे यह कह रहे हों कि जवाबदेही पर खरे न उतरने वाले नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, लेकिन कोई नहीं जानता कि राजस्थान कांग्रेस के उन विधायकों के विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं हुई, जिन्हें अनुशासनहीन पाया गया था?