जब उदयपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने यह तय कर लिया था कि वह एक व्यक्ति-एक पद के सिद्धांत पर चलेगी, तब राहुल गांधी की ओर से यह स्पष्ट करने की आवश्यकता ही नहीं थी कि यदि अशोक गहलोत पार्टी अध्यक्ष बनते हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा। अच्छा होता कि लगे हाथ वह यह भी साफ कर देते कि अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की सूरत में सचिन पायलट राजस्थान के मुख्यमंत्री बनेंगे या नहीं? पता नहीं सचिन पायलट मुख्यमंत्री बन पाएंगे या नहीं, लेकिन राहुल ने जिस तरह कांग्रेस के भावी अध्यक्ष अशोक गहलोत की सीमाएं तय कर दीं, उससे यही रेखांकित हुआ कि पार्टी की कमान कोई भी संभाले, वह उनके और परिवार के अन्य सदस्यों के हिसाब से चलने के लिए विवश होगा।

इसका एक अर्थ यह भी है कि परिवार शीर्ष पर बना रहेगा। चूंकि अशोक गहलोत न केवल गांधी परिवार की पसंद बताए जा रहे, बल्कि ऐसे संकेत भी दिए जा रहे कि इस परिवार के सबसे विश्वासपात्र वही हैं, इसलिए अध्यक्ष पद के लिए होने वाला चुनाव एक औपचारिकता ही है। अध्यक्ष पद के चुनाव के पहले अशोक गहलोत का गांधी परिवार के सदस्यों और विशेष रूप से सोनिया गांधी से बार-बार मिलना यही इंगित करता है कि परिवार उन्हें ही भावी अध्यक्ष के रूप में देखना चाहता है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अशोक गहलोत के खिलाफ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे शशि थरूर को भी सोनिया गांधी से मिलकर इसके लिए अनुमति लेनी पड़ती है।

आखिर यह कैसा आंतरिक लोकतंत्र है कि सब कुछ उस परिवार की सहमति और स्वीकृति से हो रहा है, जो करीब दो दशकों से कांग्रेस को अपनी निजी जागीर की तरह चला रहा है? यदि कांग्रेस को अध्यक्ष पद के चुनाव के नाम पर औपचारिकता का ही परिचय देना था तो फिर अच्छा होता कि चुनाव कराए ही न जाते। अध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया यदि कुछ कह रही है तो यही कि आंतरिक लोकतंत्र का दिखावा किया जा रहा है। इस दिखावे से कांग्रेस यह दावा करने में भले समर्थ हो जाए कि आखिरकार उसने अपने नए अध्यक्ष का चुनाव कर लिया, लेकिन इससे पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की जड़ों को मजबूती नहीं मिलने वाली।

कहने को तो राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व करने के बजाय उसमें भागीदारी कर रहे हैं, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं कि वही पार्टी की समस्त गतिविधियों के केंद्र में हैं। इन गतिविधियों से यही पता चलता है कि इस यात्रा का मूल उद्देश्य राहुल को कांग्रेस के सर्वोपरि नेता के रूप में स्थापित करना है। अच्छा हो कि चुनाव आयोग को ऐसे अधिकार मिलें, जिससे वह राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र के नाम पर किए जाने वाले दिखावे के रोग का उपचार कर सके।