असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी की अंतिम सूची से जिस तरह कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं दिख रहा है उसे देखते हुए इस पर हैरानी नहीं कि भाजपा इस सूची का नए सिरे से सत्यापन करने की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कह रही है। फिलहाल कहना कठिन है कि सुप्रीम कोर्ट एनआरसी को लेकर क्या आदेश-निर्देश देता है, लेकिन बेहतर होगा कि उसके फैसले का इंतजार करने के साथ ही इस सवाल का जवाब तलाशा जाए कि आखिर वे करोड़ों बांग्लादेशी कहां खप गए जो घुसपैठ करके असम के विभिन्न इलाकों में आ बसे थे? उनकी ढंग से पहचान नहीं की जा सकी या फिर वे असम से निकलकर देश के दूसरे हिस्सों में जा बसे? साफ है कि कहीं कुछ तो गड़बड़ हुई है।

यह ठीक नहीं कि हजारों करोड़ रुपये खप जाने के बाद जो नतीजा सामने आया वह किसी के गले नहीं उतर रहा है। यह सही है कि एनआरसी की अंतिम सूची के आधार पर अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता, क्योंकि जिनका नाम इस सूची में नहीं है उन्हें अदालत जाने का अधिकार है, लेकिन यह स्पष्टता तो होनी ही चाहिए कि अंतिम तौर पर बाहरी घोषित लाखों लोगों का क्या किया जाएगा? इसमें संदेह है कि उन्हें बांग्लादेश लेने को तैयार होगा। वहां की सरकार यह कह सकती है कि जिन्हें बांग्लादेशी बताया जा रहा है उनके बारे में यह साबित किया जाए कि वे अवैध रूप से भारत में घुसे थे।

आने वाले समय में यह हो सकता है कि बांग्लादेश की आर्थिक हालत में सुधार के चलते तमाम बांग्लादेशी अपने देश लौटना पसंद करें, लेकिन इसके बावजूद भारत को तो इस सवाल का जवाब खोजना ही होगा कि जिन्हें अंतिम तौर पर भारतीय नागरिक नहीं माना जाएगा उनके अधिकारों में क्या और कैसे कटौती की जाएगी? जो भी हो, यह अच्छा नहीं हुआ कि एनआरसी की लंबी प्रक्रिया किसी नतीजे पर पहुंचती नहीं दिख रही। पता नहीं इसकी तह तक जाया जाएगा या नहीं कि इस प्रक्रिया में कहां क्या खामी रही, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि असम के हालात सीमाओं की चौकसी में लापरवाही का नतीजा हैै।

कम से कम अब तोे यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि एक भी विदेशी हमारी सीमा में न घुसने न पाए। यह इसलिए बेहद जरूरी है, क्योंकि हजारों रोहिंग्या भारत में घुसकर जम्मू तक जा बसे और फिर भी किसी को खबर नहीं हुई। नि:संदेह उन तौर-तरीकों को भी सुनिश्चित करने की सख्त जरूरत है जिनसे यह आसानी के साथ तय हो सके कि कौन भारतीय है और कौन बाहरी?