जागरण संपादकीय: अवैध धार्मिक स्थल, लापरवाही की हद
हिमाचल प्रदेश में मामला केवल मस्जिदों के अवैध तरीके से निर्माण का ही नहीं डेमोग्राफी यानी जनसांख्यिकी में बदलाव का भी है। वास्तव में इसी बदलाव के कारण अवैध तरीके से बनी मस्जिदों पर लोगों की निगाह गई है। डेमोग्राफी में बदलाव की बात खुद राज्य सरकार के मंत्री ने स्वीकार की है। निःसंदेह समय के साथ विभिन्न क्षेत्रों की डेमोग्राफी में कुछ न कुछ बदलाव होता ही रहता है।
हिमाचल प्रदेश में जिस तरह एक के बाद एक अवैध तरीके से अथवा अतिक्रमण करके बनाई गईं मस्जिदों के मामले सामने आ रहे हैं, उनसे यह स्पष्ट है कि जब ये अवैध निर्माण हो रहे थे, तब उन्हें कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था। इसका पता इससे भी चलता है कि शिमला के बाद मंडी, बिलासपुर समेत कई अन्य जिलों में भी अवैध तरीके से मस्जिद निर्माण के मामले सामने आ गए हैं। शिमला में जिस मस्जिद को अवैध तरीके से बना कहा जा रहा है और जिसके खिलाफ धरना-प्रदर्शन का सिलसिला कायम हुआ, उसे लेकर नगर निगम यह बता सकने की स्थिति में नहीं कि वस्तुस्थिति क्या है।
इस मस्जिद का मामला 14 वर्षों से लंबित बताया जा रहा है। यह लापरवाही की हद ही है। शिमला में मस्जिद कमेटी ने मामला शांत करने के लिए यह लिखकर तो दे दिया कि मस्जिद की पांच में से तीन अवैध मंजिलों को वह खुद गिराने को तैयार है, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या पहली दो मंजिलें वैध हैं? जब राजधानी शिमला में यह हाल है तो दूरदराज की स्थिति का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। निःसंदेह बात केवल अवैध तरीके से बनी मस्जिदों की ही नहीं है। कहीं पर कोई भी धार्मिक स्थल अवैध रूप से निर्मित नहीं होना चाहिए- वह चाहे मस्जिद हो या मंदिर अथवा अन्य कोई धार्मिक स्थल। यह विडंबना ही है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी न तो अवैध तरीके से धार्मिक स्थलों के निर्माण का सिलसिला थम रहा है और न ही अतिक्रमण करके बनाए गए धार्मिक स्थलों को हटाया जा पा रहा है। परिणाम यह है कि अपने देश में अवैध निर्माण और अतिक्रमण थम नहीं रहा।
हिमाचल प्रदेश में मामला केवल मस्जिदों के अवैध तरीके से निर्माण का ही नहीं, डेमोग्राफी यानी जनसांख्यिकी में बदलाव का भी है। वास्तव में इसी बदलाव के कारण अवैध तरीके से बनी मस्जिदों पर लोगों की निगाह गई है। डेमोग्राफी में बदलाव की बात खुद राज्य सरकार के मंत्री ने स्वीकार की है। निःसंदेह समय के साथ विभिन्न क्षेत्रों की डेमोग्राफी में कुछ न कुछ बदलाव होता ही रहता है, लेकिन समस्या तब होती है, जब उसमें असंतुलन कायम होता हुआ दिखता है। यह देखना हर राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि डेमोग्राफी में असामान्य-अस्वाभाविक बदलाव न हो और वह सामाजिक असंतुलन का कारण न बनने पाए।
डेमोग्राफी में असामान्य बदलाव का मुद्दा केवल हिमाचल प्रदेश में ही नहीं, उत्तराखंड और अन्य अनेक राज्यों अथवा उनके कुछ इलाकों में भी उठ रहा है। चिंता की बात यह है कि कई स्थानों और विशेष रूप से सीमावर्ती इलाकों में डेमोग्राफी में बदलाव का कारण घुसपैठ बन रही है। यह किसी से छिपा नहीं कि देश के अनेक इलाकों में बांग्लादेशी और रोहिंग्या अवैध तरीके से भारतीय नागरिक के तौर पर बस रहे हैं।