तेजी से फैला कोरोना संक्रमण किस तरह गंभीर चिंता का कारण बन रहा है, इसका प्रमाण है कि प्रधानमंत्री की ओर से हालात की समीक्षा के लिए बैठक किया जाना। चूंकि कोरोना संक्रमण के कारण राज्य सरकारों की ओर से किस्म-किस्म की पाबंदियों का सिलसिला कायम हो गया है और वे बढ़ती ही जा रही हैं इसलिए यह आशंका भी उभर आई है कि कहीं लाकडाउन वाले दिनों की वापसी तो नहीं होने वाली।

सर्वप्रथम तो इस आशंका को दूर किए जाने की आवश्यकता है और इसकी भी कि अलग-अलग राज्य सरकारें अपने-अपने हिसाब से पाबंदियां न लगाएं। उचित यह होगा कि केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को ऐसे स्पष्ट निर्देश दिए जाएं कि कैसे कदम उठाने की जरूरत है और कैसे कदमों से बचने की। ऐसे कदम उठाने से बचा जाना चाहिए जिससे आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियां प्रभावित हों, क्योंकि यदि ऐसा होगा तो आम आदमी की जीविका पर असर पड़ने के साथ अर्थव्यवस्था का संकट भी बढ़ेगा।

जो उपाय संक्रमण रोकने में वास्तव में प्रभावी हैं उन पर ही अमल करने की आवश्यकता है न कि वैसे उपायों पर जो सामान्य दिनचर्या तो प्रभावित करते हैं, लेकिन संक्रमण पर लगाम नहीं लगाते। उचित यह होगा कि राज्य सरकारें रात के कर्फ्यू जैसे उन उपायों पर नए सिरे से विचार करें जो संक्रमण पर लगाम लगाने में मुश्किल से ही सहायक हैं। यह समझा जाना चाहिए कि आज की आवश्यकता यह है कि सार्वजनिक स्थलों में भीड़ का जमावड़ा न हो, लोग मास्क का सही इस्तेमाल करें और शारीरिक दूरी के नियम का पालन अवश्य करें।

अभी इसमें काफी ढिलाई दिख रही है। संक्रमण रोकने के उपाय तभी कारगर साबित होंगे जब आम जनता अपने हिस्से की जिम्मेदारी का निर्वाह करेगी। एक ओर जहां लोगों को अपनी सेहत के लिए सतर्क रहने की जरूरत है वहीं राज्य सरकारों को भी इसके लिए सक्रिय होने की आवश्यकता है कि उन लोगों का अधिकाधिक संख्या में कोरोना टेस्ट हो जिनके संक्रमण के चपेट में आने की आशंका है। इसी तरह टीकाकरण की रफ्तार भी बढ़ाई जानी चाहिए।

यह सही है कि नब्बे प्रतिशत से अधिक लोगों ने टीके की पहली खुराक और 65 प्रतिशत लोगों ने दोनों खुराक ले ली हैं, लेकिन कायदे से अब तक 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों का टीकाकरण हो जाना चाहिए था। वास्तव में उन कारणों की तह तक जाने की जरूरत है जिनके चलते कुछ लोग अभी भी टीका लगवाने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं या फिर टीके की दूसरी खुराक समय पर लेने से बच रहे हैं। ऐसे लोगों को 15 से 18 वर्ष के उन किशोरों से प्रेरणा लेनी चाहिए जो उत्साह के साथ टीकाकरण में शामिल हो रहे हैं।