रांची से इलाज कराने दिल्ली आए राष्ट्रीय जनता दल के सजायाफ्ता नेता लालू प्रसाद यादव ने खुद को एम्स से रवाना किए जाने पर जिस तरह का तमाशा खड़ा किया और उनके समर्थकों ने रेलवे स्टेशन पर जैसा उत्पात मचाया वह मनमानी के शर्मनाक उदाहरण के अलावा और कुछ नहीं। लालू यादव जब एक माह पहले रांची से दिल्ली चले थे तभी ऐसे संकेत मिल गए थे कि उनका मकसद इलाज के बहाने जेल से बाहर रहना और साथ ही दिल्ली में रहकर अपनी राजनीतिक अहमियत को भाव देना अधिक है। क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि लालू यादव को स्वास्थ्य संबंधी सामान्य समस्याओं के निदान के लिए पहले जेल से बाहर आकर रांची के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में भर्ती होने का अवसर मिला और उसके बाद दिल्ली के एम्स में? क्या अन्य सजायाफ्ता कैदियों को भी ऐसी ही सुविधा मिलती है और अगर नहीं तो फिर लालू यादव को क्यों मिलनी चाहिए? क्या लालू यादव इसलिए विशेष सुविधाओं के हकदार हो जाते हैं कि वह महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं और एक राजनीतिक दल को नियंत्रित करते हैं? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि जब एम्स के डॉक्टरों ने उन्हें सही सलामत पाया तो क्या उनके बजाय लालू यादव के इस दावे पर यकीन किया जाए कि उन्हें तथाकथित गंभीर बीमारियों ने बुरी तरह जकड़ रखा है? अगर ऐसा होने लगा तो फिर अस्पताल में इलाज कराने आए किसी कैदी को वहां से हटाना कभी संभव ही नहीं होगा। वह तो लालू यादव की तरह यही कहता रहेगा कि उसे अभी इलाज से संतुष्टि नहीं मिली है। क्या इससे खराब बात और कोई हो सकती है कि खुद को गरीबों का मसीहा बताने वाले लालू यादव इलाज के नाम पर उस एम्स में बने रहना चाहते थे जिसमें आम लोगों को उपचार करने के लिए महीनों तक इंतजार करना पड़ता है?

लालू यादव ने एम्स में जिस तरह जबरन बने रहने पर जोर दिया उससे तो वह उपचार में भी घोटाला करने की कोशिश करते नजर आए। रेलवे स्टेशन पर पुलिस कर्मियों को डांटने-फटकारने के वक्त उनके हाव-भाव देखकर किसी के लिए भी यह कहना कठिन होगा कि वह गंभीर रूप से बीमार हैं और उन्हें रह-रह कर चक्कर आ रहे हैं। इसके पहले वह एम्स के अपने प्राइवेट वार्ड में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से भी सहज भाव से मिलते हैं। क्या इससे हास्यास्पद और कुछ हो सकता है कि अपनी जन आक्रोश रैली में भ्रष्टाचार पर गुस्सा जाहिर करने के अगले दिन राहुल गांधी चारा घोटाले में सजा पाए लालू यादव से मुलाकात करना पसंद करते हैं? क्या वह भ्रष्टाचार में सजा पाए नेताओं का साथ देकर भ्रष्टाचार से लड़ने का इरादा रखते हैं? उनका इरादा जो भी हो, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अपने देश में जेल जाने की नौबत आते ही नेता एवं अन्य रसूख वाले लोग अस्पताल की शरण लेने में कामयाब हो जाते हैं। यह एक पुरानी बीमारी है और इसका इलाज जरूरी है, क्योंकि इलाज के बहाने जेल से बाहर रहने के मामले रह-रह कर सामने आते ही रहते हैं।

[ मुख्य संपादकीय ]