विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में दिल्ली का नाम छठे स्थान पर होना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह स्थिति तब और गंभीर नजर आती है, जब यह सामने आता है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने को लेकर बनाई गईं योजनाओं के बावजूद हालात में सुधार नहीं हुआ है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट जहां दुनिया के सामने देश की छवि खराब करती है, वहीं प्रदूषण पर नियंत्रण में विफलता को लेकर दिल्ली सरकार को भी कठघरे में खड़ा करती है। यह निराशाजनक है कि दिल्ली सरकार और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने को लेकर ठोस उपाय नहीं कर सकीं। गत वर्ष सर्दी में प्रदूषण का स्तर अधिक बढ़ जाने पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा तैयार ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) ठीक से लागू नहीं हो पाया। बीस एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशनों को तैयार करने में देरी हुई।

दिल्ली सरकार ने वर्ष 2018-19 के बजट को ग्रीन बजट के रूप में प्रस्तुत करते हुए प्रदूषण पर चिंता अवश्य जताई और कई प्रस्ताव भी किए हैं, लेकिन कई प्रस्तावों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। एक हजार नई स्टैंडर्ड बसें खरीदने की योजना पर हाई कोर्ट सवाल खड़े कर चुका है, वहीं एक हजार इलेक्टिक बसों की खरीद के लिए बजट की व्यवस्था नहीं है। केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रदूषण घटाने को लेकर बनाई गईं योजनाएं शत-प्रतिशत अमल में लाई जाएं। दिल्ली सरकार सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था मजबूत करे ताकि निजी वाहनों का इस्तेमाल कम कर प्रदूषण घटाया जा सके।

[ स्थानीय संपादकीय: दिल्ली ]